ज़िंदगी का कैनवास
अचानक से सारे रंग छलक गए
वो मेरे सूर्तेहाल और मुसतकबिल को
पूरा का पूरा भिगो गए
अब नया कैनवास है
उसके लिए नहीं बचा कोइ रंग
नया कैनवास मेरे वजूद की
पहचान बन गया है
डर लगता है
रंगो को छूने में, क्योंकि?
छलके थे जब सारे रंग
मिलकर बन गए थे स्याह रंग
जिससे बनती है ख़ौफ़नाक तस्वीर
जिससे लिखी जाती है
एक अपमान वाली भाषा
जिससे बनती है भयानक आँखें
जो बंद दरवाजे के बाद भी घूरती रहती है
उस कैनवास में अब
बिना रंगो वाली तस्वीर बन गई है
जिसमें नजर आते है
हिरास, बदर्जए-मजबूरी, बदरौनक और हिज्र
उस कैनवास को स्याह रंगों से बचा कर रखना
बमुशिकल है ।