Saturday 30 March 2024

मेरा स्वाभिमान



तुम मुझे देखना चाहते हो 
मदारी के बंदर की तरह 
कितना हसीन ख़्बाव है तुम्हारा,
मेरा तुम पर ऐतमाद
की जहां मुझे लगे की
कदमों तले ज़मीन नहीं है,
वहाँ मुझे तुम्हारे हाथों की 
मज़बूती का अहसास हो...
पर तुम्हारे हाथों की मज़बूती में 
कठपुतली वाली डोर फँसी हुई है 
जिसके धागे मुझ तक आते हैं
और मुझे उलझा जाते हैं 
ताकि मैं चलती रहूँ 
नागफनी के सुंदर काँटों पर 
सबसे अहम मेरे अहंकार की डोर को भी 
तुम तोड़ देना चाहते हो ,पर
वो मेरा ग़ुरूर, मेरा फहम
 नहीं बन सकते तुम्हारे गुलाम
हालातो के हाथों की 
मै कठपुतली ज़रूर हूँ पर
मेरे अंदर का स्वाभिमान जब तक ज़िंदा है 
हर उल्झी हुई डोर 
मुझे नाचने पर मजबूर 
ज़रूर कर सकती है 
पर मेरे स्वाभिमान को नहीं । 

~

ऐतमाद ~ विश्वास
फहम ~ दिमाग़