क्या -क्या अपने साथ ले गए
अब मेरा बहुत सा सामान नहीं मिला रहा
ज़्यादा कुछ नहीं बस दो चार चीज़े हैं
मैने तुम्हें हर उस जगह पर तलाशा जहाँ तुम हो सकते थे
एक मेरा विश्वास; एक मेरी परछाई
मेरी अंतर आत्मा; मेरे शब्द
पर तुम कहीं नहीं मिले
मेरा सामान तो लौटा जाते
इस बिख़रि हुइ जिंदगी को समेटने के लिए
जो तुम ले गए वो विश्वास चाहिए
इस जीवन के कोरे कागज को
लिख़ने के लिए वहीं शब्द चाहिए
मेरी अंतर आत्मा बहुत ख़ामोश है
उसका मौन तोड़ने के लिए वार्तालाप का प्रहार चाहिए
मुझे तो नहीं पर हाँ मेरी परछाइँ को आदत थी
तुम्हारे साए से रूठने और मनाने की
उस परछाइँ को हो सकता है इतंज़ार हो
कह दो कि तुम मेरा सामान तो लौटाने आओगे एक बार
इंतज़ार करती आँख़ें पथरा जरूर गई हैं
पर अब ये तुम्हें नहीं रोकेंगी रोड़ा बन
क्योंकि पत्थर बोलते नहीं
बेहद सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आप का मुकेश कुमार जी ।
Deleteअत्यंत हृदयस्पर्शी रचना है
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मालती जी ।
Deleteअत्यंत हृदयस्पर्शी रचना है
ReplyDeleteशुक्रिया आपका मालती जी ।
Deleteदिल को छू लेने वाली रचना ! अति सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका राजेश कुमार जी ।
Deleteदिल को छू लेने वाली रचना ! अति सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका राजेश कुमार जी ।
Deleteअपने जितने दूर होते हैं उन्हें हम उतने करीब तलाशते है.… एक उम्मीद हर हाल में बांधे रखती है हमें...
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना
बहुत बहुत आभार आपका कविता जी ।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका मेरी रचना को ब्लॉग बुलेटिन में स्थान देने का ।
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ReplyDeleteSELF PUBLISHING
जी शुक्रिया आप का ।
Deleteबहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना.
ReplyDeleteनई पोस्ट : दिल मचल गया होता
बहुत बहुत शुक्रिया आप का राजीव कुमार जी ।
Deleteबहुत सुन्दर रचना....|
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका रितेश जी । मेरी रचना को पढ़ने और सराहने का ।
Deletepthar bina bole bhi bahut kuch kahte hain.. apki kvita ki tarah
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका अरूण जी मेरी रचना को पढ़ने और सराहने के लिए.
Deleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका अरूण जी मेरी रचना को पढ़ने और सराहने के लिए.
Deleteबहुत सुन्दर रचना....|
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका जमशेद आज़मी जी.
Deleteगहरी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका मोनिका जी ।
Deleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका ।
Deleteमन को छूती गहन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत शुक्रिया आपका ।
Deleteबहुत बहुत शुक्रिया आप का यशोदा जी मेरी रचना को स्थान देने का ।
ReplyDeleteक्या खूब लिखा है..!! लाजवाब..!!!
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका संजय जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर और भावपूर्ण। दुर्गा पूजा और दशहरे की शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका हिमकर जी.
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आप का ।
Deleteसुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका ज्योति जी.
Deleteसुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका ज्योति जी.
Deleteसुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आप का ।
Deleteक्या बात है !.....बेहद खूबसूरत रचना....
ReplyDeleteआप को दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं...
नयी पोस्ट@आओ देखें मुहब्बत का सपना(एक प्यार भरा नगमा)
बहुत बहुत शुक्रिया आप का ।
ReplyDeleteसुन्दर रचना ......
मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन की प्रतीक्षा है |
http://hindikavitamanch.blogspot.in/
http://kahaniyadilse.blogspot.in/
बहुत बहुत शुक्रिया आपका ऋषभ जी आप की ब्लाग जरूर पढूंगी।
Deleteमन पथराया... बहुत उम्दा अभिव्यक्ति, बधाई.
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका ।
Deleteसुंदर रचना ...शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका ।
Deleteदर्दनाक अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteमंगलकामनाएं !
बहुत बहुत शुक्रिया आपका |
Deleteबहुत उम्दा |
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका ।
Deleteबेहद भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी .
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया रीता जी ।
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत बढिया....,..
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका कौशल लाल जी ।
Deleteनिसंदेह उत्तम रचना
ReplyDeleteQuotes Greetings
बहुत बहुत शुक्रिया आपका क्रितिकिया जी .
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बहुत बहुत शुक्रिया जी ।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअति भावपूर्ण प्रस्तुति। धन्यवाद मधुलिकाजी ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आप का संपत कुमारी जी ।
Deleteमधुलिका जी ,
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ है ....आपकी यह अभिव्यक्ति बड़ी अपनी सी लगी .... लगा कि कहीं न कहीं ये भाव मेरे मन में भी घुमड़ रहे हों ...उसका मौन तोड़ने के लिए वार्तालाप का प्रहार चाहिए ..... संवादहीनता ही मन को प्रस्तर बना देती है .... गहन अभिव्यक्ति ....
बहुत बहुत शुक्रिया आप का संगीता जी मेरी रचना को पढने और सराहने का ।
DeleteSundar rachna...
ReplyDeleteaabhar
बहुत बहुत शुक्रिया आप का महेश जी ।
Deleteभावपूर्ण रचना..सुन्दर जी
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आप का कंचनलता जी ।
Deleteपत्थर भी बोलेंगे, बस लिखते रहो।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका गिरधारी खंकरियाल जी मेरी रचना को पढ़ने और सराहने का.
Deleteविश्वास का लौट आना जरूरी है ... बस एक यही सबसे जरूरी सामान है जो कहीं नहीं मिलता ... गहरे भाव लिए शब्द ...
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आप का दिगम्बर सर जी । मेरी रचना को पढने और सराहने का ।
ReplyDeleteभावभीनी रचना । मेरा कुछ सामान....गाने की याद दिला गई। बधाई।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आशा जी मेरी रचना की तारीफ के लिए.
Deleteमेरे ब्लॉग पर आने का आभार।
ReplyDeleteआपका भी शुक्रिया
Deleteइंतज़ार करती आँख़ें पथरा जरूर गई हैं
ReplyDeleteपर अब ये तुम्हें नहीं रोकेंगी रोड़ा बन
क्योंकि पत्थर बोलते नहीं----- अदभुत
मन को मथती कमाल की अनुभूति
सादर
बहुत बहुत शुक्रिया आपका ज्योति खरे जी मेरी रचना की तारीफ करने का.
Deleteकविता पढकर पत्थर भी बोल जायेंगे। भावपूर्ण रचना है।
ReplyDeleteमेरी कविताएं भी पढकर देखें .....अब खून भी बहता नहीं, पर जख्म भी बढते गये,
और दर्द शायरी में , उतरता चला गया .........click on http://manishpratapmpsy.blogspot.com
बहुत बहुत शुक्रिया आपका मनीष जी. आप की रचनाएँ जरूर पढूगीं.
Deleteकविता पढकर पत्थर भी बोल जायेंगे। भावपूर्ण रचना है।
ReplyDeleteमेरी कविताएं भी पढकर देखें .....अब खून भी बहता नहीं, पर जख्म भी बढते गये,
और दर्द शायरी में , उतरता चला गया .........click on http://manishpratapmpsy.blogspot.com
बहुत बहुत शुक्रिया आपका मनीष जी.
Deleteजब विश्वास चला जाता है...तब मौन छा जाता है, आँखें पथरा जाती हैं.. मगर भीतर शोर बहुत होता है...
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना ! बधाई आपको!
~सादर
अनिता ललित
बहुत बहुत शुक्रिया आपका अनिता जी.
Deleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका अनिता जी.
Deleteअनुपम प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका ।
Deleteब्लॉग मे स्तरीय कवितायें पढ़ पढ़ कर , किसी नए ब्लॉग मे बड़े अनमने मन से गया , मगर आपकी इस कविता ने मन झकझोर दिया , चलती फिरती भाषा मे सब कुछ लिख दिया आपने, समवेदनाओं की और भावों की बेजोड़ प्रस्तुति , बधाई
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका ।
DeleteMadhulika Patelजी ब्लाग पर आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ...और दिली शुक्रिया इस लिए भी ....की आपकी राह आपके ब्लाग तक आ सका.....बा-कमाल बहुत सुंदर कलम है आपकी !! उसका मौन तोड़ने के लिए वार्तालाप का प्रहार चाहिए"...वाह..!!
ReplyDeleteसाभार
हर्ष महाजन
बहुत बहुत शुक्रिया आपका मेरी ब्लॉग पर आने का । मेरी रचना को पढने और सराहने का । आभार ।
Deleteगहरे भाव लिये सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका ।
Deletekyaa baat hai.. very nice poem.. arz kiyaa hai,
ReplyDeleteजज़्बात के लहरों पर
तूफ़ान का था ये मौसम
जो तुझको न छू पायी
क्या इतनी हवा थी कम
-kaunquest (www.kaunquest.com)
बहुत बहुत शुक्रिया आपका ।
DeleteBehad Khubsurat and marmasparshi...
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका पुष्पेन्द्र गंगवार जी ।
Deleteमधुलिका जी, 'कुछ अलग सा' पर सदा स्वागत है आपका
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका गगन जी मेरी ब्लॉग पर आने का ।
Deleteकिसी अपने के जाने पे ये सब स्वाभाविक ही चला जाता है ... दिल को छूते भाव
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया दिगम्बर नसवा सर जी ।
Deleteबहुत बहुत शुक्रिया आप का सावन कुमार जी ।
ReplyDeleteआह , ..मार्मिक . सामान ले जाने वाले निर्मम होते हैं .
ReplyDeleteआदरणी बहुत बहुत आभार आपका ।
Delete