Sunday, 2 April 2023

पत्तियों सी ज़िन्दगी ...

 मुझे मेपल ट्री की पत्तियाँ बहुत ख़ूबसूरत लगती हैं।

कल मेरी बेटी ने विदेश से लौटते वक्त

मुझसे पूछा..माँ आपके लिए क्या लाऊँ तौहफ़ें में

मैंने कहा बस दो चार

मेपल ट्री की पत्तियाँ ले आना 

चाहे सूखी ही क्यों हो।

ये ज़िंदगी की हकीकत का आईना हैं।

सूखी पत्तियाँ अच्छी लगती हैं।

सच जीवन का आपके सामने परोस देती हैं।

एक वक्त के बाद वो दरख़्त 

को अलविदा कह देती हैं।

या शायद दरख़्त उसे 

अहसास कराती हैं..ये 

कोमल पत्तियाँ जीवन की परिपक्वता की तरह

फिर पीली हो चुकी पत्तियाँ

जीवन की पूर्णता को दर्शाती हुई।

टूट कर बिखरने के कगार पे

मानव जीवन की तरह

रूह को जिस्म से जुड़े रहने तक

और फिर टूट कर बिखर गयी

वजूद के खोने तक

इस जहान में खो गयी

जैसे जिस्म रूह से जुदा होकर

खाक होकर उड़ गया

कायनात में कहीं

शाख से जुदा हुए पत्ते की तरह

कहाँ से कहाँ तक का सफ़र

फिर कहाँ जन्म लेना है कुछ नहीं खबर।

सूखे पत्ते की तरह चूर चूर हो जाता

हमारा घमंड, ईर्ष्या, घृणा, द्वेष

अपना वजूद खो कर

हवा में घुल जाना 

रूह की तरह ...

Tuesday, 19 July 2022

मिट्टी बन्ने में वक़्त लगेगा



मिट्टी में मिलने के बाद

ये काया धीरे-धीरे

मिट्टी हो जाया करती है।

उसे कोई चाह कर भी 

नहीं रोक पाता

पर मिट्टी में मिलने के बाद

जो हम में बसता रहता है।

सालों साल वो अहंकार

पर्वत सा

वो प्रतिस्पर्धा ज्वाला सी 

वो नफ़रत पत्थरों सी

वो जिजीविषा सौ बरस जीने की

वो माया जाल ना टूटने वाले

ताने बाने का 

इन बीहड़ों में उलझी हुई आत्मा

इन सारे मिट्टी के टीलों को

जिन्होंने बहुत पहले मिट्टी

हो जाना चाहिए था।

ये आत्मा के साथ

आत्मसात् हो जाते हैं।

ना होते तो फिर 

इनके जीवित

रहने से 

मिट्टी को भी 

मिट्टी बन्ने में 

वक्त लगेगा।

Tuesday, 17 May 2022

माँ तुम यहीं हो

पवित्र नदीजिसे हम 
माँ नर्मदा कहते हैं
अक्सर जाती हूँ 
और सीढ़ी पर बैठ कर 
घंटो ख़ामोशी से बहती 
नदी को देखती रहती हूँ
मैं कई दिनोंमहीनोंसालों से 
कुछ तलाश रही थी 
घाट की सीढियाँ उतरती हैं 
गहरे पानी में 
आखरी सीढ़ी से टकराते पानी की 
आवाज़ मुझे खींच रही थी 
उस आवाज़ का अनुसरण कर 
वहां जाती हूँ 


उस आखरी सीढ़ी पर 
बैठ कर टकराते पानी की 
आवाज़ सुनती हूँ समझती हूँ 
मेरी तलाश को एक 
मुकाम हासिल होता है 
उस टकराते पानी को 
ध्यान से सुनती हूँ 
उस आवाज़ में मुझे 
अहसास होता है की 
माँ तुम यहीं हो 
माँ नर्मदा ने 
मुझे मेरी माँ से मिला दिया 
अब माँ के जाने के बाद 
जब भी मन करता है 
उनसे मिलने का 
आखिरी सीढ़ी के टकराते पानी से 
बातें कर लेती हूँ 
एक माँ ने मुझे मेरी माँ लौटा दी