स्त्री और समेटना दोनों शब्द एक दूसरे के पूरक हैं
बचपन से ही माँ सिखाती है
अपना कमरा समेट कर रखो
कपड़े किताबें बिखरा हुआ सामान
हम माँ के रूप में इस शब्द को
समझते और अपने आप में
ढालते चले जाते हैं
माँ कितना कुछ समेटती है
अपनी ज़िंदगी को
कठिनाइयों के दर्द को बिखरे हुए रिश्तों को
अपने पल्लू को
जिसमें काम की यादों की गांठे लगी हुई हैं
अपने सुनहरे बालों को
जो उसके सुंदर से चेहरे पर
अटखेलियों करते हैं
हम स्त्रियाँ सारी ज़िंदगी
घर को समेट कर उसे
जीवन देते हैं
अपनी सांसो से सींचते है
हर समेटी हुई चीजों के बीच में
अपनी महत्वकांक्षाओं को भी
बड़ी उम्मीद से
समेट देते हैं
की पता है कभी पूरी नहीं होने वाली
जब अपनी इच्छाओं के पंखों को
समेट लेते हैं तो, सभी के उन्नति के
द्वार खुल जाते हैं
इक उम्र के बाद
उड़ान भरे हुए पंख
और थके हुए पंखों
के बीच की कहानी कोई समझ पाए
आराम की तलाश में
सुकून भरे घोंसले की आस में
स्त्री और पंख
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय
Deleteसुंदर भावपूर्ण पंक्तियाँ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय सर
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीया
Deleteसुंदर सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय
Deleteउड़ान भरते पंख और थके से पंख...
ReplyDeleteउड़ान भरते पंख कहाँ समझ पाते हैं थके पंखों की कहानी....
सच कहा समेटती ही तो हैं स्त्रियाँ जीवन भर न जाने क्या क्या।
बहुत ही लाजवाब सृजन
वाह!!!
तहेदिल से शुक्रिया आप का आदरणीया
Deleteजो बात दिल से निकले और दिल से कही जाए, वो दिल को कैसे न छुए ?
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय सर,
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भावपूर्ण हृदयस्पर्शी सृजन
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय
ReplyDeleteगहरी पंक्तियाँ ... सती के मन को बाखूबी शब्दों में उतारती हैं आप ...
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय
ReplyDeleteसमेटने की कला ही भीतर से डिगने नहीं देती, जो बातों को एक पल में समेट सके वह बिखरता नहीं
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीया
Deleteबहुत सुंदर हृदय स्पर्शी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीया
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीया
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीया
ReplyDeleteसर्वप्रथम धन्यवाद् !
ReplyDeleteमेरे पोस्ट पर पधारने के लिए -
हाँ ! औरत हूँ मैं –
दर्द की हर परिभाषा को समझती हूँ
तभी तो बेटी से माँ बनने तक
हर रिश्तें को बड़े जतन से सहेजती हूँ।
बहुत सुन्दर !
"समेटना " बहुत छोटे से शब्द में ... एक स्त्री जीवन को प्रस्तुत कर दिया / / भावपूर्ण !
तह से शुक्रिया आपका आदरणीय सर
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