~ 1 ~
तरक्की की वो दौड़
हर मायने खो देती है जनाब
जिसमें माँ - बाप का हाथ
उनके बच्चों से छूटता जाए
~ 2 ~
वक़्त ने सीखा और समझा दिया
बहुत सी भीड़ रही अपनों की
पर सारी ज़िन्दगी
अकेले ही चलते रहे
~ 3 ~
शहर में बड़ी चहल पहल है
लग रहा है खूब बिक रही हैं मेरी यादें
तूने उसकी बोली
बड़े सस्ते दामों में जो लगा दी
~ 4 ~
मैंने कहा चली जाओ
मेरी ज़िन्दगी से
पर वो कहाँ मानने वाली थी
तेरी यादें
तेरी तरह उनको भी
अड़े रहने की
पुरानी आदत जो ठहरी
~ 5 ~
मेरी खामोश यात्रा का वो मुसाफिर
बात कुछ भी नहीं हुई
पर पता नहीं क्यों
आज तक उसके किस्से
ख़त्म ही नहीं हो रहे
~ 6 ~
मेरे दुपट्टे के हर मकेश के साथ
धागे की जगह
तुम्हारी यादें टकी हुई हैं
कल मैं गइ थी
कारीगर के पास
मकेश निकलवाने
उसने कहा इन्हे उधेड़ने से
सब कुछ तार - तार हो जाएगा