Tuesday 19 July 2022

मिट्टी बन्ने में वक़्त लगेगा



मिट्टी में मिलने के बाद

ये काया धीरे-धीरे

मिट्टी हो जाया करती है।

उसे कोई चाह कर भी 

नहीं रोक पाता

पर मिट्टी में मिलने के बाद

जो हम में बसता रहता है।

सालों साल वो अहंकार

पर्वत सा

वो प्रतिस्पर्धा ज्वाला सी 

वो नफ़रत पत्थरों सी

वो जिजीविषा सौ बरस जीने की

वो माया जाल ना टूटने वाले

ताने बाने का 

इन बीहड़ों में उलझी हुई आत्मा

इन सारे मिट्टी के टीलों को

जिन्होंने बहुत पहले मिट्टी

हो जाना चाहिए था।

ये आत्मा के साथ

आत्मसात् हो जाते हैं।

ना होते तो फिर 

इनके जीवित

रहने से 

मिट्टी को भी 

मिट्टी बन्ने में 

वक्त लगेगा।

Tuesday 17 May 2022

माँ तुम यहीं हो

पवित्र नदीजिसे हम 
माँ नर्मदा कहते हैं
अक्सर जाती हूँ 
और सीढ़ी पर बैठ कर 
घंटो ख़ामोशी से बहती 
नदी को देखती रहती हूँ
मैं कई दिनोंमहीनोंसालों से 
कुछ तलाश रही थी 
घाट की सीढियाँ उतरती हैं 
गहरे पानी में 
आखरी सीढ़ी से टकराते पानी की 
आवाज़ मुझे खींच रही थी 
उस आवाज़ का अनुसरण कर 
वहां जाती हूँ 


उस आखरी सीढ़ी पर 
बैठ कर टकराते पानी की 
आवाज़ सुनती हूँ समझती हूँ 
मेरी तलाश को एक 
मुकाम हासिल होता है 
उस टकराते पानी को 
ध्यान से सुनती हूँ 
उस आवाज़ में मुझे 
अहसास होता है की 
माँ तुम यहीं हो 
माँ नर्मदा ने 
मुझे मेरी माँ से मिला दिया 
अब माँ के जाने के बाद 
जब भी मन करता है 
उनसे मिलने का 
आखिरी सीढ़ी के टकराते पानी से 
बातें कर लेती हूँ 
एक माँ ने मुझे मेरी माँ लौटा दी

Sunday 6 March 2022

कुछ पंक्तियाँ



~ 1 ~

 उस मोड़ का वो ढ़लान 

जहाँ मेरा रास्ता अलग हो जाता था

उसकी गवाह वो

गुलमोहर और नीम की 

बंटी हुई छांव



~2~

जीवन की जंग में 

रोज़ मैं अपने 

हथियारों को तराशती हूँ 

पर दुनियाँ से 

जब रूबरू होती हूँ 

तो पाती हूँ 

अभी और धार बाकि है



~ 3 ~

कर्मों की कश्ती 

 जाने किस दरख्त 

को काट कर बनाई जाती है 

एक खासियत बड़ी अच्छी है 

इसमें, कि एक दिन 

हमारे पास वापस लौट कर 

ज़रूर आती है





~ 4 ~

बहुत सी यादें थी 

कुछ सुलझी 

कुछ उल्झी 

उनमें से चुनना मुश्किल था 

फिर मैंने एक फैसला लिया 

उन्हें वक्त पे छोड़ दिया 

और फिर जिरह चलती रही 

तारीखें बदलती रही



~ 5 ~

उसने सर्द अल्फ़ाज़ों 

से कहा 

ज़िन्दगी भी रात की तरह है 

चांदनी सी चमक बहुत है 

चारो तरफ 

पर किस्मत का हर सितारा 

टूटा हुआ है



~ 6 ~

इस शहर की सर्द हवाएं 

मुझसे होकर गुज़री 

कुछ तुझसे 

हवाओं की गुफ्तगू 

ने हौले से फ़रमाया 

हम एक ही शहर में हैं



~ 7 ~

एक उलझी हुई 

उदास होती शाम 

कुछ खाली प्याले 

कुछ आधे भरे हुए 

कांच कुछ टूटे 

बिखरे हुए 

पर इन सबसे 

जुड़ी हुई 

एक कहानी 

शायद सुनी किसी ने नहीं 

पर अनकही 

भी तो रही नहीं