मिट्टी में मिलने के बाद
ये काया धीरे-धीरे
मिट्टी हो जाया करती है।
उसे कोई चाह कर भी
नहीं रोक पाता
पर मिट्टी में मिलने के बाद
जो हम में बसता रहता है।
सालों साल वो अहंकार
पर्वत सा
वो प्रतिस्पर्धा ज्वाला सी
वो नफ़रत पत्थरों सी
वो जिजीविषा सौ बरस जीने की
वो माया जाल ना टूटने वाले
ताने बाने का
इन बीहड़ों में उलझी हुई आत्मा
इन सारे मिट्टी के टीलों को
जिन्होंने बहुत पहले मिट्टी
हो जाना चाहिए था।
ये आत्मा के साथ
आत्मसात् हो जाते हैं।
ना होते तो फिर
इनके जीवित
रहने से
मिट्टी को भी
मिट्टी बन्ने में
वक्त लगेगा।