वह छत के कोने में
धूप का टुकड़ा
बहुत देर ठहरता है
उसे पता है
अब मुझे काफी देर
यहीं वक़्त गुज़ारना है
क्योंकि वह शाम की
ढलती धूप जो होती है
उम्र के उस पड़ाव की तरह
और मन डर कर
ठहर जाता है
ठंडी धूप की तरह
जब अपने स्वयं के लिए
वक़्त ही वक़्त है
अब घोंसले में अकेले
पक्षी की तरह
अब सब उड़ना सीख गए
आँखों में जो अकेलापन बस गया है
उसे कहीं तोह छिपाना है
कहाँ - कहाँ
चश्मे के पीछे
अखबार के पन्नों में
पार्क की किसी खाली बेंच
या
छत का कोना
क्योंकि वो ढलती धूप
मेरे बहाने जानती है
इसलिए रुकी रहती है
काफी वक़्त तक
मेरे लिए
क्योंकि अब
मुझे काफी देर
यहीं वक़्त गुज़ारना है |