Friday 15 October 2021

बीते हुए लम्हें




मैंने यादों को सफ़ेद लिबास में

दफ़्न होते देखा है

कल किसी ने दस्तक दी

दरवाज़े पर

मैंने पूछा कौन है

उसने कहा मैं हूँ बीता हुआ लम्हा

क्या मैं अंदर आ जाऊँ..

मैंने कहा आओ

ये किस बच्चे को साथ ले आए

उसने कहा ये तुम्हारा बचपन है

बहुत दिनो से ज़िद कर रहा था

तुम्हें अपने साथ अपने शहर

ले जाने के लिए

पुराने घर में पुराने दोस्तों के साथ

वो जानी पहचानी वाली सड़कों

का शहर छोटा सा शांत

चूल्हे की सौंधी रोटी

नदी का किनारा

बड़ी सी मुस्कुराहट

वाला भोला सा बचपन

इमली आम कच्चे जाम

दोपहर की सस्ती क़ुल्फ़ी

चाँदनी रात में बिछावन

कल नहीं था सोचने को

आज में जी भर कर जीने वाले

बड़े शहर के जाल में

पक्षी सा फँस के

रह गया जीवन

कब पंख टूट कर

बिखर गये

वापस अपने शहर

न आ सके

उस पुराने मकान से

जुड़ी हुई थी कईं यादें

आज उसके गिरने से

सब टुकड़े टुकड़े सा

बिखर गया

मैंने यादों को

सफ़ेद लिबास में

दफ़्न होते देखा है...