Sunday 4 October 2020

पंक्तियाँ.. दिल से



 उसने पेपर पर 

और मैंने माँ के हाथ पर 

कर दिए दस्तखत 

और हमें मिल गयी 

अपने अपने हिस्से की दौलत 

~

हर दिन डरती थी 

तुम्हे खोने से 

पर अब देखो 

जब से तुम गए हो 

ये डर भी खामोशी से 

बिना बताये कहाँ चला गया

पता नहीं 

~

मेरी कब्र की मिट्टी 

आज कुछ नम है 

सुना है आज तू 

मेरी पसंद के 

रजनीगंधा के फूल 

लाने वाला था 

~

बहुत दिन के बाद 

मिल तो रहे हो 

पर मैं तुम्हारे जितना 

दौलतमंद नहीं 

कहीं ऐसा न हो 

चंद लम्हों के बाद 

तुम्हे कुछ 

ज़रूरी काम याद आ जाए