पवित्र नदी, जिसे हम
माँ नर्मदा कहते हैं
अक्सर जाती हूँ
और सीढ़ी पर बैठ कर
घंटो ख़ामोशी से बहती
नदी को देखती रहती हूँ
मैं कई दिनों, महीनों, सालों से
कुछ तलाश रही थी
घाट की सीढियाँ उतरती हैं
गहरे पानी में
आखरी सीढ़ी से टकराते पानी की
आवाज़ मुझे खींच रही थी
उस आवाज़ का अनुसरण कर
वहां जाती हूँ
उस आखरी सीढ़ी पर
बैठ कर टकराते पानी की
आवाज़ सुनती हूँ समझती हूँ
मेरी तलाश को एक
मुकाम हासिल होता है
उस टकराते पानी को
ध्यान से सुनती हूँ
उस आवाज़ में मुझे
अहसास होता है की
माँ तुम यहीं हो
माँ नर्मदा ने
मुझे मेरी माँ से मिला दिया
अब माँ के जाने के बाद
जब भी मन करता है
उनसे मिलने का
आखिरी सीढ़ी के टकराते पानी से
बातें कर लेती हूँ
एक माँ ने मुझे मेरी माँ लौटा दी
वाह !!! मन की भावनाएँ कैसे और कहाँ पहुँच जाती हैं। नर्मदा नदी में माँ की छवि को महसूस करना , बहुत संवेदनशील अभिव्यक्ति ।।
ReplyDeleteआदरणीया तहेदिल से शुक्रिया आपका.
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19.5.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4435 में दिया जाएगा| चर्चा मंच पर आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबाग
आदरणीय सर तहेदिल से शुक्रिया आपका मेरी रचना को चर्चा मंच में स्थान देने पर.
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 19 मई 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
आदरणीय सर तहेदिल से शुक्रिया आपका मेरी रचना को पांच लिंकों का आनंद में स्थान देने पर.
Deleteअच्छा विचार है |
ReplyDeleteआदरणीय तहेदिल से शुक्रिया आपका.
Deleteआखिरी सीढ़ी के टकराते पानी से
ReplyDeleteबातें कर लेती हूँ
एक माँ ने मुझे मेरी माँ लौटा दी.... अत्यंत मार्मिक और रूहानी अहसास!!!
आदरणीय तहेदिल से शुक्रिया आपका.
Deleteदिल को छूती सुंदर रचना।
ReplyDeleteआदरणीया तहेदिल से शुक्रिया आपका.
Deleteमाँ का सुखद अहसास माँ ही कराती हैं
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी प्रस्तुति
आदरणीया तहेदिल से शुक्रिया आपका.
Deleteमन को छूती बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteआदरणीय तहेदिल से शुक्रिया आपका.
Deleteमार्मिक रचना
ReplyDeleteआदरणीया तहेदिल से शुक्रिया आपका.
Deleteबहुत खूबसूरत भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteआदरणीया तहेदिल से शुक्रिया आपका.
Deleteहृदय स्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteआदरणीया तहेदिल से शुक्रिया आपका.
Deleteहृदय स्पर्शी रचना, गहन अहसास समेटे।
ReplyDeleteआदरणीया तहेदिल से शुक्रिया आपका
Deleteबहुत ही सुंदर... खूबसूरत 💕
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका,
Deleteभावनाओं का शब्दों से गहरा रिश्ता होता है
ReplyDeleteएक - एक शब्द भावनाओं से ओतपोत ।
सुन्दर अति सुन्दर !
तहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय ।
Deleteबहुत अच्छी कविता. हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteमन को छूती सुंदर रचना।
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीया ।
Deleteकितना कुछ है इन लफ़्ज़ों में …खूबसूरत
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय ।
Deleteहृदय को स्पर्श करती बेहद प्यारी रचना 🙏
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीया
Deleteवाह , नर्मदा के साथ माँ का साम्य ..नदी माँ जैसी होती है और माँ नदी जैसी ..बहुत सुन्दर कविता मधूलिका जी . आपने कहानी पढ़ी ,अच्छी लगी ..ब्लाग पर आने का बहुत धन्यवाद .क्योंकि इसी लिये मैं आपकी सुनदर रचना पढ़ सकी .
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीया
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