~ 1 ~
उस मोड़ का वो ढ़लान
जहाँ मेरा रास्ता अलग हो जाता था
उसकी गवाह वो
गुलमोहर और नीम की
बंटी हुई छांव
~2~
जीवन की जंग में
रोज़ मैं अपने
हथियारों को तराशती हूँ
पर दुनियाँ से
जब रूबरू होती हूँ
तो पाती हूँ
अभी और धार बाकि है
~ 3 ~
कर्मों की कश्ती
न जाने किस दरख्त
को काट कर बनाई जाती है
एक खासियत बड़ी अच्छी है
इसमें, कि एक दिन
हमारे पास वापस लौट कर
ज़रूर आती है
~ 4 ~
बहुत सी यादें थी
कुछ सुलझी
कुछ उल्झी
उनमें से चुनना मुश्किल था
फिर मैंने एक फैसला लिया
उन्हें वक्त पे छोड़ दिया
और फिर जिरह चलती रही
तारीखें बदलती रही
~ 5 ~
उसने सर्द अल्फ़ाज़ों
से कहा
ज़िन्दगी भी रात की तरह है
चांदनी सी चमक बहुत है
चारो तरफ
पर किस्मत का हर सितारा
टूटा हुआ है
~ 6 ~
इस शहर की सर्द हवाएं
मुझसे होकर गुज़री
कुछ तुझसे
हवाओं की गुफ्तगू
ने हौले से फ़रमाया
हम एक ही शहर में हैं
~ 7 ~
एक उलझी हुई
उदास होती शाम
कुछ खाली प्याले
कुछ आधे भरे हुए
कांच कुछ टूटे
बिखरे हुए
पर इन सबसे
जुड़ी हुई
एक कहानी
शायद सुनी किसी ने नहीं
पर अनकही
भी तो रही नहीं
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (07 मार्च 2022 ) को 'गांव भागते शहर चुरा कर' (चर्चा अंक 4362) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय मेरी रचना को चर्चा अंक में स्थान देने पर.
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय.
Deleteबहुत सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीया
Deleteशानदार लघु रचनाएं! सभी क्षणिकाएं सार्थक भाव समेटे सुंदर अभिनव।
ReplyDeleteसस्नेह।
बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय
Deleteलाजवाब सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय,
Deleteबेहतरीन क्षणिकाएँ ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीया
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय
Deleteबेहतरीन दर्शन।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय,
Deleteवाह बेहतरीन गहराई से निकली मन को गहरे तक छूती प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय संजय जी
Deleteमैंने इनमें से प्रत्येक रचना को बहुत ध्यान से पढ़ा भी, गुना भी। अंततः यही पाया कि मेरे लिए इन्हें अनुभूत कर लेना ही पर्याप्त है। और जो बात हृदय के तल पर जाकर स्थिर हो जाए, उस पर भला क्या टिप्पणी की जा सकती है?
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