Monday 10 August 2015

अश्क बहाना है मना



आज मेरी कलम ने किया है मना 
किसी की याद में अश्क बहाना है मना
आज कोइ नज्म नई बना
उस गली और मोड़ के शब्दों को ले 
जहॉं तू कभी खड़ा था अकेले
तब भी तो तू सुकून से जीता था 
आज फ़िर उन पुरानी राहों को नाप आ
जिनकी वीरानगी पर तू चलकर होता था ख़फ़ा
गम दे कर भूल जाना जिसकी फ़ितरत थी
तूने क्यों उसकी यादों को
सीने से लगाने की जरूरत की 
पुरानी यादों को रेज़ा-रेज़ा हो जाने दे
बेइन्तेहा बेकस हो कर डूब मत 
परेशांहाली में मयख़ाने के अंदर 
पैमाने मत तौल 
बाहर आ और ख़ुली फ़िजा में सांस ले 
चार कदम आगे बढ़ और ज़िदंगी को थाम ले 
आज मेरी कलम ने किया है मना 
किसी की याद में अश्क बहाना है मना

9 comments:

  1. मन बोझिल हो तो कलम उँगलियों में धंस के रह जाती हैं
    बहुत सुन्दर

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  2. बहुत बहुत आभार आपका कविता जी.

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  3. यादों के गलियारे से निकलकर यथार्थ की रह पकड़ लेना ही जीवन पथ है। वेदना को सृजन का आकार देना ही जीवन है।कविता बहुत कुछ कहती है। मर्मस्पर्शी।

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  4. यादों के गलियारे से निकलकर यथार्थ की रह पकड़ लेना ही जीवन पथ है। वेदना को सृजन का आकार देना ही जीवन है।कविता बहुत कुछ कहती है। मर्मस्पर्शी।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मेरी रचना को पढने और सराहने का ।

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  5. कलम यादें समेटने नहीं देती ... पर अश्क तो निकल ही आते हैं अपने आप ...
    गहरी रचना ...

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    1. बहुत बहुत आभार आपका दिगम्बर जी ।

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  6. बेहद गहरे अर्थों को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना..

    वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|
    http://sanjaybhaskar.blogspot.in

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    1. शुक्रिया आपका संजय जी ।

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