मैंने अपने हिस्से के कुछ सपने
छुपा दिए थे उम्मीदों के आसमान में
सोच रही हूँ वहाँ जा कर
ले आऊं उन्हें
मेरे रोशनदान पर एक बुल बुल
रोज दाना चुगने आती है
मैंने उससे कहा तुम्हारे
पंख मुझे उधार देदो
मैं स्त्री हूँ
मैं सपने देख भी सकती हूँ
सपने चुरा भी सकती हूँ
पर सपनों में जीना
तमाम पाबंदियों के बीच
सपनों को यूं
आकाश से उठा लाना
नहीं संभव है
इन कोशिशों में
कई पंख जल गए
कितने सपने जब भी लाइ
वो हालातों के पर्वतों से टकरा
चूर चूर हो गए
कुछ लावा बन कर पिघल गए
पता नहीं रेजा रेजा हो कर
कहाँ बिखर गए
बंदिशों की आग और आंधी
बचे हुए सपने
अब टूट कर न बिखरे
तुम सुन रही हो न
तुम्हारे पंख मेरे सपने
तुम्हारे रंगीन पंखों सा
रंग भरूंगी उन सपनों में
मुझे तुम्हारे पंख चाहिए
न टूटे, न उम्मीदों के दामन से
मेरा हाथ छूटे ...
बहुत सुंदर रचना, मधुलिका जी।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय ।
Deleteसुन्दर, अनसुलझे अहसासों से रुबरू कराती अनुपम कृति..
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीया ।
Delete
ReplyDeleteसादर नमस्कार,
आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 19-02-2021) को
"कुनकुनी सी धूप ने भी बात अब मन की कही है।" (चर्चा अंक- 3982) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीया मेरी रचना को चर्चा अंक में स्थान देने पर ।
Deleteबहुत अच्छी अभिव्यक्ति है यह मधूलिका जी । मन के तारों को झिंझोड़ देने वाली ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय ।
Deleteसपनो को लाने के लिए
ReplyDeleteपंख भी अपना ही लगाना होगा
जहाँ की तपिश से भी
खुद तुमको ही बचाना होगा ।
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति
बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीया ।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 18 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीया मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में स्थान देने पर ।
Deleteसपनों की खुशबू जीवन में सकारात्मकता का संचार करते रहें।
ReplyDeleteअति सुंदर सृजन मधुलिका जी।
सादर।
बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीया ।
Deleteमधुलिका जी बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना |
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय ।
Deleteबहुत सुन्दर मार्मिक और सारगर्भित रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीयसर।
Deleteसुंदर अभिव्यक्ति मधुलिका जी!!
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीया ।
Deleteवाह!बहुत ही सुंदर मोहक लेखन।
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीया ।
Deleteहृदय स्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteसंवेदनाओं से गूंथे भाव।
बहुत सुंदर रचना।
बधाई।
बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय
Deleteनारी के अतीत के अनुभव और भविष्य के सपनो का सटीक विवरण पेश करती सुंदर रचना, मधुलिका दी।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीया ।
Deleteभावपूर्ण व हृदयस्पर्शी रचना शुभकामनाओं सह।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय ।
Deleteसपनों पर बेहद ख़ूबसूरत सपनींली रचना...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति मधुलिका जी,सादर नमन
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीया ।
DeletePlease see my poem on blog please
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीया ।
Deleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय ।
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय ।
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय ।
DeleteVery beautiful poem
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया ।
Deleteबेहद ख़ूबसूरत बातों को यूं शब्द देना आपकी कलम ही कर सकती है मधुलिका जी..आभार ।
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आप का आदरणीय संजय जी।
Deleteबहुत सुंदर कविता...
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आप का आदरणीया ।
Deleteटूटते हैं बिखरते हैं ... पर उनका देखना कभी बन्द नहीं होना चाहिए ...
ReplyDeleteजीने का संबल हैं ये सपने ...
तहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय ।
Deleteबहुत सुंदर मधुलिका जी!
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीया ।
Deleteआप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय
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