Wednesday 12 January 2022

मेरी आवाज़ खो सी गइ है कहीं


 ज़माने की रौनक में 

ज़िन्दगी ढूंढने का मसला 

रफ़्तार के बीच 

कहीं पीछे छूट जाने का डर 

पहचान को बरक़रार 

रखने की जद्दोजहत 

हुज़ूम के बीच की ज़िन्दगी 

जहाँ तिल भर भी हिलने की 

जगह न हो 

कभी कभी भ्रम होता है 

जीवन को सांसे 

मिल भी रही है की नहीं 

कोई खेल रहा है 

तुम्हारे साथ 

ताश की बाज़ी 

कौन सा पत्ता अब 

टेबल पर पड़ने वाला है 

बढ़ता टेंशन का लेवल 

मेरी आवाज़ मुझमें ही 

खो सी गइ है कहीं 

दुनिया के बाज़ार में

शब्द सब खर्च हो गए हैं 

जीने के लिए अगले 

दिन में ढकेल दिए 

जाते हो 

इतनी रफ़्तार में 

दोस्त और दुश्मन

दोनों को समझ पाना 

बड़ा मुश्किल है

प्यार और नफरत 

सिक्के के दो पहलु

पर सिक्का अब

घूमता ही रहता है

बहुत तेज़ी से 

जिससे की तुम 

कुछ महसूस ही 

नहीं कर पाओ 

जब दूभर हो जाता है 

इन सब के बीच जीना 

तब अकेले निकल पड़ना 

लॉन्ग ड्राइव के लिए 

सन्नाटे की खोज में 

जहाँ अपनी आवाज़ 

लौटकर खुद अपने 

को सुनाई दे 


16 comments:

  1. इन अशआर के बीच बिखरे आपके अहसासात को महसूस कर सकता हूँ मैं। ये ज़माना ही ऐसा है कि जिसमें ऐसी लाचारी को सहना पड़ता है, अपनी ही आवाज़ कहीं खो गई सी लगती है जिसे ढूंढ़ना भी एक मशक़्क़त भरा काम लगता है। ये वक़्त, ये दुनिया, ये ज़माना शायद उन्हीं के लिए है जो जज़्बात से कोरे हैं। इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी साहब की लिखी हुई और चित्रा सिंह जी की गाई हुई एक मशहूर ग़ज़ल (इसमें कोई शिकवा ना शिकायत ना गिला है) का एक शेर है:
    मुझको मेरी आवाज़ सुनाई नहीं देती
    कैसा ये मेरे जिस्म में इक शोर मचा है

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    1. आदरणीय सर आपका तहेदिल से शुक्रिया ,

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  2. समय की दुरुहताओ ने जीवन के जोखिम बढ़ा दिए हैं। बहुत गहनता से विवेचन प्रस्तुत किया है आपने जीवन का। बहुत बढ़िया लिखा आपनेलोहड़ी पर्व और मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई आपको मधुलिका जी 🙏🙏🌷🌷❤️❤️

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    1. प्रिय रेणु,तहेदिल से शुक्रिया आपका,आप को भी मकर संक्रांति और नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ,स्नेह

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  3. बहुत बहुत सुन्दर रचना

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    1. आदरणीय सर आप का तहेदिल से शुक्रिया ,

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  4. कुछ महसूस ही
    नहीं कर पाओ
    जब दूभर हो जाता है
    इन सब के बीच जीना
    तब अकेले निकल पड़ना
    लॉन्ग ड्राइव के लिए
    सन्नाटे की खोज में
    जहाँ अपनी आवाज़
    लौटकर खुद अपने
    को सुनाई दे

    वाह! क्या खूब कहा!
    अगर खुद से मिलना है तो सबसे दूर हो जाओ तभी खुद से मिल पाओगे!
    काले घने अंधेरों में जब खुद को देख नहीं पाओगे
    तब खुद को महसूस कर पाओगे!

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    1. प्रिय मनीषा स्नेह और बहुत सारी शुभकामनाएं.मेरी ब्लाग पर आने के लिए तहेदिल से शुक्रिया.

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  5. निराशा की पराकाष्ठा में आशा का जन्म होता है।
    परिस्थितियों से हारना नहीं हराना ही जीवन की सार्थकता है।
    सादर।

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    1. प्रिय श्व़ेता जी मेरी ब्लाग पर आने के लिए तहेदिल से शुक्रिया.

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  6. आदरणीय सर मेरी रचना को पाँच लिंकों का आनंद में स्थान देने पर तहेदिल से शुक्रिया आपका,

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  7. मेरी आवाज़ मुझमें ही
    खो सी गइ है कहीं
    दुनिया के बाज़ार में
    शब्द सब खर्च हो गए हैं
    मर्मस्पर्शी सृजन ।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया मीना जी.

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  8. आशा और निशाशा मन की स्थितियां है जो बदलती रहती हैं ...
    शायद यही जीवन है ... गहरी भाव संजोये हैं रचना में ...

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  9. आदरणीय सर तहेदिल से शुक्रिया मेरी ब्लाग पर आने के लिए 🙏

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