Saturday, 15 August 2020

तुम्हारे शहर की बूँदें


 बारिश में जब भी तुम्हारे 

शहर गया 

न तो तुम दिखी 

न मुलाक़ात हुई 

पर बहुत सी बूँदें 

तुम्हारे शहर की 

छाते में सिमट कर आ गईं 

कई दिनों से 

वो यादों की सीलन 

महका रही थीं 

कमरे को 

उन्हें मिटाने के लिए 

आखिर मैंने

आज कड़ी धूप में 

छाता खोल कर सुखा दिया




34 comments:

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर 🙏 ।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 16 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. तहेदिल से शुक्रिया आप का आदरणीया मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में स्थान देने के लिए।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर ।

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  4. बहुत खूब जादूगरी।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर ।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर ।

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  6. वाह!लाजवाब सृजन।
    सादर

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    1. आदरणीया बहुत बहुत शुक्रिया आप का ।

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  7. सुन्दर प्रस्तुति

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर ।

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  8. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (17अगस्त 2020) को 'खामोशी की जुबान गंभीर होती है' (चर्चा अंक-3796) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव

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  9. आदरणीय सर मेरी रचना को चर्चा अंक में स्थान देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका ।

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  12. पर बहुत सी बूँदें

    तुम्हारे शहर की

    छाते में सिमट कर आ गईं ...कुछ बूंदों पे बहुत कुछ कह द‍िया मधूल‍िका जी ...वाह

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका ।

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  13. बहुत सुन्दर रचना

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर ।

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  14. ये यादों की सीलन मिट जाएगी तो क्या
    धूप यादों के दाग भी मिटा देगी?
    खूब
    उम्दा

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका ।

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  15. काश की छाता सुखाने से यादें निकल पायें ... नमी तो सूख जाएगी पर दिल के किसी कोने में दाग रह जाएगा ... रह रह के उनके करीब ले जाएगा ... दिल में उतरती हुई अभिव्यक्ति ...

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका आप का नेस्वा सर जी ।

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  16. वाह बेहद खूबसूरत अंदाज़ में आपने अपने अहसासों को लफ़्ज़ों में पिरो दिया । बहुत खूब मधुलिका जी ।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका आपका मेरी ब्लॉग पर आने का ।

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  17. रिश्तों की सीलन भी काम नुक्सानदेह नहीं होती, उन्हें भी जरुरी है धूप दिखाना

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  18. बहुत बहुत शुक्रिया आपका,

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  19. क्या कहना है तसवीरों का ! क्या कहना है अशआरों का ! न जाने कितने ही लोग इनसे अपने आपको, अपने अतीत को जोड़ सकते हैं । सचमुच ही एक लाजवाब रचना ।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका

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