नमस्ते, आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (17अगस्त 2020) को 'खामोशी की जुबान गंभीर होती है' (चर्चा अंक-3796) पर भी होगी। -- चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है। जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए। -- हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। -- -रवीन्द्र सिंह यादव
काश की छाता सुखाने से यादें निकल पायें ... नमी तो सूख जाएगी पर दिल के किसी कोने में दाग रह जाएगा ... रह रह के उनके करीब ले जाएगा ... दिल में उतरती हुई अभिव्यक्ति ...
वाह
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर 🙏 ।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 16 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आप का आदरणीया मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में स्थान देने के लिए।
Deleteबहुत खूब।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर ।
Deleteबहुत खूब जादूगरी।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर ।
Deleteबहुत सुन्दर और सार्थक।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर ।
Deleteवाह!लाजवाब सृजन।
ReplyDeleteसादर
आदरणीया बहुत बहुत शुक्रिया आप का ।
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर ।
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (17अगस्त 2020) को 'खामोशी की जुबान गंभीर होती है' (चर्चा अंक-3796) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
-रवीन्द्र सिंह यादव
आदरणीय सर मेरी रचना को चर्चा अंक में स्थान देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका
Deleteलाजवाब
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका ।
Deleteपर बहुत सी बूँदें
ReplyDeleteतुम्हारे शहर की
छाते में सिमट कर आ गईं ...कुछ बूंदों पे बहुत कुछ कह दिया मधूलिका जी ...वाह
बहुत बहुत शुक्रिया आपका ।
Deleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर ।
Deleteये यादों की सीलन मिट जाएगी तो क्या
ReplyDeleteधूप यादों के दाग भी मिटा देगी?
खूब
उम्दा
बहुत बहुत शुक्रिया आपका ।
Deleteकाश की छाता सुखाने से यादें निकल पायें ... नमी तो सूख जाएगी पर दिल के किसी कोने में दाग रह जाएगा ... रह रह के उनके करीब ले जाएगा ... दिल में उतरती हुई अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आप का नेस्वा सर जी ।
Deleteवाह बेहद खूबसूरत अंदाज़ में आपने अपने अहसासों को लफ़्ज़ों में पिरो दिया । बहुत खूब मधुलिका जी ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आपका मेरी ब्लॉग पर आने का ।
Deleteरिश्तों की सीलन भी काम नुक्सानदेह नहीं होती, उन्हें भी जरुरी है धूप दिखाना
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका,
ReplyDeleteक्या कहना है तसवीरों का ! क्या कहना है अशआरों का ! न जाने कितने ही लोग इनसे अपने आपको, अपने अतीत को जोड़ सकते हैं । सचमुच ही एक लाजवाब रचना ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका
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