सरहदों से तुम्हारा आना
पलाश के फूल की तरह
वहीँ तो खिलते हैं
उमीदों की तपती दोपहर में
तुम आओगे तो न
बहुत दिनों से कह तो रहे हो
पर आने के तुम्हारे संदेशों में
इंतज़ार मुझे हराता नहीं है
वो ख़त्म होती ख़ुशी को
रोज़ मैं
खींच कर, खरोंच कर
बचा कर
जी रही हूँ
फिक्रमंद ज़िन्दगी रोज़ मरती है
और ये परेशानियों का अब्र
चाहिए बहुत सारा सब्र
बड़े शहरों के बड़े वादे
और तू भी आने की बातों के
फरेब में जीना सिखा दे
पीली पत्तियाँ और ये पतझड़
इन्ही के बीच
कहीं न कहीं
नई कोपलें भी होंगी
हर कोने में उदासी फ़ैल रही है
तुम थोड़ा जल्दी आ जाना
मैंने एक शोख रंग बचा रखा है
उसे हम ख़ुशी में घोल देंगे
सच कहो तुम
इंतज़ार की हद के
गुजरने से पहले तो
आ जाओगे न
वाह!अंतस को सहलाती सारगर्भित रचना!!!
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 22 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआदरणीय मैडम मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यावाद
Deleteबहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी।
ReplyDeleteआदरणीय सर बहुत बहुत शुक्रिया?
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर
Deleteबहुत बहुत शुक्रिया सर
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन आदरणीया।
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत शुक्रिया आपका ।
Deleteसरहदों से आती आवाजें हमें बताती हैं कि जीवन और देश के प्रति कर्तव्यों के बीच कैसे सामंजस्य बिठाए जाते हैं ... बहुत खूब लिखा कि इंतज़ार मुझे हराता नहीं है
ReplyDeleteवो ख़त्म होती ख़ुशी को
रोज़ मैं
खींच कर, खरोंच कर
बचा कर
जी रही हूँ
फिक्रमंद ज़िन्दगी रोज़ मरती है ...वाह
तहेदिल से शुक्रिया आपका
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका
Deleteआदरणीया बहुत बहुत शुक्रिया आपका मेरी रचना को चर्चा अंक में स्थान देने के लिये ।
ReplyDeleteसरहदों से तुम्हारा आना
ReplyDeleteपलाश के फूल की तरह
वहीँ तो खिलते हैं
उमीदों की तपती दोपहर में
तुम आओगे तो न
बहुत दिनों से कह तो रहे हो
पर आने के तुम्हारे संदेशों में
इंतज़ार मुझे हराता नहीं है
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण सृजन।
आदरणीया बहुत बहुत शुक्रिया आप का 🙏
Deleteसुंदर और सराहनीय बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आप का ।
Deleteहृदयस्पर्शी रचना
ReplyDeleteमेरी ब्लाग पर आने के लिए तहेदिल से शुक्रिया आप का 🙏
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकिसी शोख रँग को छुपा के रखने की चाहत ... किसी ख़ास के लिए ही तो रहिति है ... लाजवाब रचना ...
ReplyDeleteआदरणीय सर तहेदिल से शुक्रिया आपका ।
Deleteशानदार रचना । मेरे ब्लॉग पर आप का स्वागत है ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका ।
Deleteमन को आन्दोलित करती रचना.
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीया।
Deleteअति सुंदर व मार्मिक ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका ।
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