बारिश में जब भी तुम्हारे
शहर गया
न तो तुम दिखी
न मुलाक़ात हुई
पर बहुत सी बूँदें
तुम्हारे शहर की
छाते में सिमट कर आ गईं
कई दिनों से
वो यादों की सीलन
महका रही थीं
कमरे को
उन्हें मिटाने के लिए
आखिर मैंने
आज कड़ी धूप में
छाता खोल कर सुखा दिया
बारिश में जब भी तुम्हारे
शहर गया
न तो तुम दिखी
न मुलाक़ात हुई
पर बहुत सी बूँदें
तुम्हारे शहर की
छाते में सिमट कर आ गईं
कई दिनों से
वो यादों की सीलन
महका रही थीं
कमरे को
उन्हें मिटाने के लिए
आखिर मैंने
आज कड़ी धूप में
छाता खोल कर सुखा दिया