मेरे घर की मसाले वाली चाय अदरक की
बस दो छोटे से बहाने थे
गुलाबी ठण्ड बिताने के
धूप की चमक आँखों में
बातों का सिलसिला किताबों में
मासूम सी मुलाक़ात
बहुत जल्दी में
ढलती वो चटकीली धूप
मलाल तो रहता है
घाटियों सी उदासियाँ
कल की धूप बहुत कुछ
पार करके आएगी
बादलों को भी तो
कभी कभी
कुछ काम नहीं होता
बेमौसम बरस कर
सूरज को छिपा आते हैं कहीं
काश सूरज तेरे घर के
काँच के जार में
बंद रहता
बनी रहती धूप सुनहरी
तेरे आँगन की
और अदरक वाली चाय
मेरे घर की