तेरे आँगन की धूप सुनहरी चमकीली
मेरे घर की मसाले वाली चाय अदरक की
बस दो छोटे से बहाने थे
गुलाबी ठण्ड बिताने के
धूप की चमक आँखों में
बातों का सिलसिला किताबों में
मासूम सी मुलाक़ात
बहुत जल्दी में
ढलती वो चटकीली धूप
मलाल तो रहता है
घाटियों सी उदासियाँ
कल की धूप बहुत कुछ
पार करके आएगी
बादलों को भी तो
कभी कभी
कुछ काम नहीं होता
बेमौसम बरस कर
सूरज को छिपा आते हैं कहीं
काश सूरज तेरे घर के
काँच के जार में
बंद रहता
बनी रहती धूप सुनहरी
तेरे आँगन की
और अदरक वाली चाय
मेरे घर की
वाह, सुंदर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय ।
Deleteवाकई अदरक वाली चाय सुनहरी धुप में पी जाए तो बात ही क्या ... बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसंगीता जी जब आप जैसे बड़े लेखकों की प्रशंसा मिलती हैं तो मै अपने आप को बहुत सौभाग्यशाली मानती हूँ, बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीया ।
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय सर ।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (31-03-2021) को "होली अब हो ली हुई" (चर्चा अंक-4022) पर भी होगी।
ReplyDelete--
मित्रों! कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। परन्तु प्रसन्नता की बात यह है कि ब्लॉग अब भी लिखे जा रहे हैं और नये ब्लॉगों का सृजन भी हो रहा है।आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं हो भी नहीं रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आदरणीय सर नमस्कार,मेरी रचना को चर्चा अंक में स्थान देने पर तहेदिल से शुक्रिया आपका ।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 30 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआदरणीया मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में स्थान देने पर तहेदिल से शुक्रिया आपका,
Deleteकाश!काँच के ज़ार में बंद रख पाती कुछ
ReplyDeleteखूबसूरत पल और सुनहरे समय की.मखमली लच्छियाँ।
बहुत सुंदर भावाव्यक्ति प्रिय मधुलिका जी।
सस्नेह
सादर।
बहुत बहुत शुक्रिया आपका श्वेता जी,बडा ही ख़ूबसूरत सा शब्द आपने लिखा है,मखमली लच्छियाँ,स्नेह एंव शुभकामनाएँ ।
Deleteतेरे आँगन की धूप सुनहरी चमकीली
ReplyDelete...बहाने थे
बेहद खूबसूरत तरीके से लिखी गई ये पंक्तियाँ मन को भा गई। ।। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया।।।
तहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय सर ।
Deleteवाह मधूलिका जी बहुत दिनों बाद पढ़ने को मिला...अद्भुत लिखा ''बनी रहती धूप सुनहरी
ReplyDeleteतेरे आँगन की
और अदरक वाली चाय
मेरे घर की '' वाह
आदरणीय सर बहुत बहुत शुक्रिया आपका हौसलाअफ़जाई के लिए,ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।
Deleteमोहक अभिव्यक्ति अनुराग समेटे हृदय में।
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीया ।
Deleteघर आँगन की कई छोटी छोटी यादें एक दूजे के आँगन में न आयें तो यादें खान बनती हैं ... इन्ही के सहारे जीवन भी चलता है ...
ReplyDeleteबहुत
Deleteआदरणीय सर बहुत बहुत शुक्रिया,मै सौभाग्यशाली हूं आप की हौसलाअफ़जाई मेरी रचनाओं को मिलती है, आदरणीय शुभकामनाएँ ।
Deleteक्या खुशबू है .. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीया ।
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय।
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत कुछ कहने का जी कर रहा है इस कविता को पढ़कर लेकिन फ़िलहाल यही कहना है कि यह बहुत अच्छी लगी मुझे ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय।
ReplyDeleteठंडा दिसंबर,
ReplyDeleteसुनहरी धूप
और अदरक वाली चाय...मानो जैसे इश्क़ मुकम्मल हो गया..
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय।
Deleteआप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
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