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उसने पूछा ये ठहाके
का राज़ क्या है
आँखें खामोश थी
गम को कहीं तो
ठहरना था
आज हसी में ही सही
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उसकी निशानियां
अब बंद पड़ी हैं मेरे पास
वो संदूक तो जंग खा गया
पर वो बेजान चीज़ें
अब भी उतनी ही
खूबसूरत हैं यादों की तरह
सोचती हूँ काश कभी
यादों को भी जंग लग जाए
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अपने शहर के रास्तों पर
खड़े हो कर
जब ये सोचना पड़ जाए
की अब जाना कहाँ है
तब ये अहसास होता है
मेरा शहर अब
मुझे भुलाने लगा है
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वो कलम मेरी बड़ी दुश्मन थी
जब भी खत में तुझे
तेरी शिकायत में उतारना चाहा
अक्सर टूट जाया करती थी
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वो मज़दूर सब आलिशान आशियाने की
छत मरम्मत कर आया
पर अपने घर की छत से टपकते पानी ने
उसे समझाया
मौसम बदलने का इंतज़ार
किया जा सकता है
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