वो एक नदी यादों की
मेरे साथ बहती बहती
एक कहानी बन गई
मैं वो तुम्हें सुनाना चाहती थी
मुकम्मल होने तक कहानी
तुम्हारी ख़ामोशी है ज़रूरी
पर क्या तुम मौन रहोगे
क्या तुम मुझे सुन रहे होगे
बहुत कठिन होता है
किसी को ख़ामोशी से सुनना
तुम्हारी आंखो को
मुझे समझना होगा
क्योंकि वो दिमाग़ के
अनचाहे वाकयात को
बंया कर देती हैं
मेरी यादें मेरी कहानी
वो शतरंज का खेल है न
उससे मिलती जुलती है
तुमने कहा एक प्यारा शब्द
कल कॉफी शॉप में बैठ कर
तफ़सील से सुनूँगा
मैंने कहा अपने आप से
पर वहाँ तो मुझे अपनी कहानी
घर पर छोड़ कर जानी होगी
नए दौर का नया फ़रमान
वो मेरा तफ़हीम से कहना
उस माहौल में मेरी कहानी
शब्द शब्द बदलना होगा मुझे
क्योंकि तुम कदर-शनास नहीं
कभी कभी मुझे लगता है
मेरी कहानी
उँचे पेड़ पर टंगी
मुझे चिढा रही है
की मैं न कभी
सुना सकूँगी
वो एक नदी सी
मेरे साथ-साथ
बहती रहेगी...
क्या कहूँ पढ़कर ? निस्तब्ध हूँ।
ReplyDeleteआदरणीय तहेदिल से शुक्रिया आपका ।
Deleteक्या कहूँ मधु जी मन चीर रहे हैं भाव...।
ReplyDeleteसादर।
--------
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २३ जनवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आदरणीया मेरी रचना को पाँच लिंकों का आनंद में स्थान देने पर तहेदिल से शुक्रिया आपका ।
Deleteवाह
ReplyDeleteआदरणीय तहेदिल से शुक्रिया आपका
Deleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteआदरणीय तहेदिल से शुक्रिया आपका ।
Deleteकुछ कहानियां वाकई नदी की तरह साथ बहती हैं ताउम्र... मुकम्मल होने की आस लिए... सिर्फ अपने जेहन में दबी सी...कोई मिलता ही नहीं सुनने वाला ऐसा जो उन्हें समझ सके...
ReplyDeleteमनमंथन करती लाजवाब रचना ।
तहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीया
Deleteबहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीया
Deleteखामोशी को खामोशी सुन पाना आसान कहाँ … हर किसी का अपना अफ़ाना होता है
ReplyDeleteआदरणीय सर तहेदिल से शुक्रिया आपका
Deleteबेहद खूबसूरत अहसास
ReplyDeleteआदरणीय सर तहेदिल से शुक्रिया आपका
Deleteनदी का बहना और उसे कहना दो अलग बातें हैं। नदी तो बहती ही है पर उसे इस तरह कह पाना कि सामने वाला हृदयंगम करे, बड़ा कठिन है। बहुत ही सुन्दर बात
ReplyDeleteआदरणीया तहेदिल से शुक्रिया आपका ।
Deleteहमेशा की तरह बहुत ख़ूब लिखा है मधु …. 👌👌
ReplyDeleteआदरणीय तहेदिल से शुक्रिया आपका
Delete