ऐ ज़िन्दगी तू
इतना क्यों रुलाती है मुझे
ये आँखे है मेरी
कोई समंदर या दरिया नहीं
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गुज़रे हुए कल
मैंने तो हद कर दी
वक़्त से ही वक़्त की
शिकायत कर दी
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मेरी मुस्कान गिरवी
रखी थी जहाँ
वो सौदागर ही न जाने
कहाँ गुम हो गया
न तो मेरी चीज़ लौटाई
न ब्याज़ बताया
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तुमने मुझ पर दोस्ती के हक
अदा न करने के सौ इल्ज़ाम लगाए
पर एक भी इल्ज़ाम को
तुम साबित नहीं कर पाए
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काश मुश्किलें एक दिन
मुझसे कहें की
आज मैं तेरे आशियाने
का पता - ठिकाना ही भूल गयी
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माँ है वो तेरी
कोई चट्टान नहीं
वो अल्फ़ाज़ मत लौटा उसे
जो उसने तुझे कभी
सिखाये ही नहीं
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तुमने कभी कुछ बोला ही नहीं
की रास्ते में दोबारा
मुलाक़ात होगी की नहीं
और मैं खामखां
इंतज़ार शब्द को
अपनी वसियत लिख बैठी
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आज हवाओं में बहुत शोर है
लगता है गली में
खुशियाँ बेचने वाला
सौदागर आया है |
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