कही दफ़ना दिया
उससे छीन कर उसकी मुस्कुराहट को
कहीं छिपा दिया
चाहती थी वो सूरज की किरनों से पहले
दौड़ कर धरा को छू लू
गुन-गुनी धूप सी गरमाइश
हाथों में हुआ करती थी
जाड़े में गुलमोहर के नीचे
इंतज़ार खत्म होता था
और सर्द हवाओं में
काँपते उसके हाथ
होते थे तुम्हारे हाथों में
वो गरमाइश अब बर्फ हो गई
वो कभी न खत्म होने वाली
बातों का सिलसिला
अब कभी-कभी कानों मे
कहीं दूर गूंजता सा है
वो तुम्हारी उपमा
सुबह के सूरज की आभा
चहरे से बहुत दूर हो चली है
अब माथे पर लकीरें हैं
पगडंडियों की तरह
जिनमें खो कर अपने आप को ढूँढना
बहुत मुश्किल है
वो झुके हुए कंधे और बढ़ता हुआ बोझ
पुराने वक़्त को किसी खोए हुए सिक्के की तरह
ढूँढती है आँखें ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-05-2015) को माँ की ममता; चर्चा मंच -1987 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
शास्त्री जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया। आपकी ब्लाग एक बहुत अच्छा ज़रिया है लोगों तक पहुंचने का। तहे दिल से शुक्रिया।
Deleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका ओंकार जी
Deleteवाह बहुत सुंदर प्रस्तुति ...
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका नीरज जी
Deleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteउत्तर दो हे सारथि !
बहुत बहुत शुक्रिया आपका कालीपद जी
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteशुक्रिया आपका रश्मि जी
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteशुक्रिया आपका सुमन जी
Deletewaah bahut hi khoobsoorat nazm...dhairoN daad Madhulika ji....
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका हर्ष जी
Deleteबेहद सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका कहकशां जी
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका मदन मोहन जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण कविता मधुलिका जी, देरी से आने के लिए खेद है
ReplyDeleteअनीता जी आप ने दिल को छू लेने वाली बात कह दी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
Deleteबेहद खूबसूरती से रचित.भावुक प्रस्तुति
ReplyDeleteपर एक बार अपने भीतर भी ढूंढे सब कुछ चल चित्र सा चल पड़ेगा
बेहद खूबसूरती से रचित.भावुक प्रस्तुति
ReplyDeleteपर एक बार अपने भीतर भी ढूंढे सब कुछ चल चित्र सा चल पड़ेगा
बहुत बहुत शुक्रिया आपका रचना जी
ReplyDeleteक्या बात है। बहुत ही सुन्दर रचना।
ReplyDeletehttp://chlachitra.blogspot.in
http://cricketluverr.blogspot.in
बहुत बहुत शुक्रिया आपका मिथिलेश जी
Deleteवक्त ही है जो किसी के बस में नहीं होता ...हालात इसके गुलाम हैं ...
ReplyDeleteगहरी सोच लिए भाव ..
सुंदर भाव !
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका सुशील कुमार जी
Deleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
बहुत बहुत शुक्रिया आपका
Deleteगहरी सोच लिए भाव
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका संजय जी
Deleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
बहुत बहुत शुक्रिया आपका जी
DeleteBahut sundar rachna
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका शिवराज जी
Deleteगहरे भावों की अभिव्यक्ति।बहुत ही खूबसूरत रचना।
ReplyDeleteगहरे भावों की अभिव्यक्ति।बहुत ही खूबसूरत रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका राजेश कुमार जी
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