मैंने यादों को सफ़ेद लिबास में
दफ़्न होते देखा है
कल किसी ने दस्तक दी
दरवाज़े पर
मैंने पूछा कौन है
उसने कहा मैं हूँ बीता हुआ लम्हा
क्या मैं अंदर आ जाऊँ..
मैंने कहा आओ
ये किस बच्चे को साथ ले आए
उसने कहा ये तुम्हारा बचपन है
बहुत दिनो से ज़िद कर रहा था
तुम्हें अपने साथ अपने शहर
ले जाने के लिए
पुराने घर में पुराने दोस्तों के साथ
वो जानी पहचानी वाली सड़कों
का शहर छोटा सा शांत
चूल्हे की सौंधी रोटी
नदी का किनारा
बड़ी सी मुस्कुराहट
वाला भोला सा बचपन
इमली आम कच्चे जाम
दोपहर की सस्ती क़ुल्फ़ी
चाँदनी रात में बिछावन
कल नहीं था सोचने को
आज में जी भर कर जीने वाले
बड़े शहर के जाल में
पक्षी सा फँस के
रह गया जीवन
कब पंख टूट कर
बिखर गये
वापस अपने शहर
न आ सके
उस पुराने मकान से
जुड़ी हुई थी कईं यादें
आज उसके गिरने से
सब टुकड़े टुकड़े सा
बिखर गया
मैंने यादों को
सफ़ेद लिबास में
दफ़्न होते देखा है...