वो एक नदी यादों की
मेरे साथ बहती बहती
एक कहानी बन गई
मैं वो तुम्हें सुनाना चाहती थी
मुकम्मल होने तक कहानी
तुम्हारी ख़ामोशी है ज़रूरी
पर क्या तुम मौन रहोगे
क्या तुम मुझे सुन रहे होगे
बहुत कठिन होता है
किसी को ख़ामोशी से सुनना
तुम्हारी आंखो को
मुझे समझना होगा
क्योंकि वो दिमाग़ के
अनचाहे वाकयात को
बंया कर देती हैं
मेरी यादें मेरी कहानी
वो शतरंज का खेल है न
उससे मिलती जुलती है
तुमने कहा एक प्यारा शब्द
कल कॉफी शॉप में बैठ कर
तफ़सील से सुनूँगा
मैंने कहा अपने आप से
पर वहाँ तो मुझे अपनी कहानी
घर पर छोड़ कर जानी होगी
नए दौर का नया फ़रमान
वो मेरा तफ़हीम से कहना
उस माहौल में मेरी कहानी
शब्द शब्द बदलना होगा मुझे
क्योंकि तुम कदर-शनास नहीं
कभी कभी मुझे लगता है
मेरी कहानी
उँचे पेड़ पर टंगी
मुझे चिढा रही है
की मैं न कभी
सुना सकूँगी
वो एक नदी सी
मेरे साथ-साथ
बहती रहेगी...