Monday, 29 March 2021

धूप सुनहरी तेरे आँगन की


तेरे आँगन की धूप सुनहरी चमकीली 

मेरे घर की मसाले वाली चाय अदरक की 

बस दो छोटे से बहाने थे 

गुलाबी ठण्ड बिताने के 

धूप की चमक आँखों में 

बातों का सिलसिला किताबों में 

मासूम सी मुलाक़ात 

बहुत जल्दी में 

ढलती वो चटकीली धूप 

मलाल तो रहता है 

घाटियों सी उदासियाँ 

कल की धूप बहुत कुछ 

पार करके आएगी 

बादलों को भी तो

कभी कभी 

कुछ काम नहीं होता 

बेमौसम बरस कर 

सूरज को छिपा आते हैं कहीं 

काश सूरज तेरे घर के 

काँच के जार में 

बंद रहता 

बनी रहती धूप सुनहरी 

तेरे आँगन की 

और अदरक वाली चाय 

मेरे घर की 



Sunday, 7 March 2021

बेटी ~ एक नायाब हीरा


बेटी पराया धन नहीं 

माँ - बाप का नायाब हीरा होती है 

बेटी की विदाई 

यह एक शब्द है 

पर क्या हम वाकई 

बेटी को विदा कर पाते हैं 

दो बक्सों में सामान रखने से 

बेटी की विदाई 

संपूर्ण नहीं होती 

उसने इतने सालों से

जो उस घर को बिखेर रखा है 

वो सामान जो 

हमारे रग रग में बसा है 

हम कैसे उसे समेटे 

पूरे घर में उसकी खुशबू 

उसकी हंसी 

उसकी मुस्कुराहट

उसके सुख दुःख 

घर के हर कण कण में समाये हैं 

स्त्री एक अद्वितीय रचनाकार है 

जो रचता है 

उसे हम विदा कैसे करें 

बेटी विदा नहीं होती 

वह एक और 

नए संसार को रचती है 

नए रिश्ते को पूर्ण करती है 

अपने परिवार से नए 

परिवेश को जोड़ती है 

बेटी पराया धन नहीं 

एक नायाब हीरा है