मैंने अपने हिस्से के कुछ सपने
छुपा दिए थे उम्मीदों के आसमान में
सोच रही हूँ वहाँ जा कर
ले आऊं उन्हें
मेरे रोशनदान पर एक बुल बुल
रोज दाना चुगने आती है
मैंने उससे कहा तुम्हारे
पंख मुझे उधार देदो
मैं स्त्री हूँ
मैं सपने देख भी सकती हूँ
सपने चुरा भी सकती हूँ
पर सपनों में जीना
तमाम पाबंदियों के बीच
सपनों को यूं
आकाश से उठा लाना
नहीं संभव है
इन कोशिशों में
कई पंख जल गए
कितने सपने जब भी लाइ
वो हालातों के पर्वतों से टकरा
चूर चूर हो गए
कुछ लावा बन कर पिघल गए
पता नहीं रेजा रेजा हो कर
कहाँ बिखर गए
बंदिशों की आग और आंधी
बचे हुए सपने
अब टूट कर न बिखरे
तुम सुन रही हो न
तुम्हारे पंख मेरे सपने
तुम्हारे रंगीन पंखों सा
रंग भरूंगी उन सपनों में
मुझे तुम्हारे पंख चाहिए
न टूटे, न उम्मीदों के दामन से
मेरा हाथ छूटे ...