ख़ुल कर जीते हैं
आख़िरि सांस तक
निस्वार्थ भाव से सिख़ाते हैं
अपने बच्चो को उड़ना
ख़ुल जाते हैं जब बच्चो के पंख़
नहीं उम्मीद करते की
ये मुड़कर लौटेगा भी की नहीं
आने वाला कल
घोंसला ख़ाली होगा की भरा
कैसे रह पाते होंगें
उनके अपने जब दूर चले जाते होंगें
उनके आँसू उनका दिल उनका इतंज़ार
क्या वो घोंसले से निकाल फ़ेकते हैं
और उड़ जाते हैं सब कुछ झटक कर
कहीं बहुत दूर बिना यादों के