Saturday, 26 September 2020

ऐ ज़िंदगी ...

 

 कल बहुत देर तलक सोचती रही
फिर सोचा बात कर ही लूं  
फिर मैंने ज़िंदगी को फ़ोन लगाया 
मैंने कहा आओ बैठो किसी दिन 
दो चार बातें करते हैं 
एक एक कप गर्म चाय की प्याली
एक दूसरे को सर्व करते हैं 
हमेशा भागती रहती हो ज़रा जीने भी दो 
कुछ मेरी पसंद के दो चार दिन 
इतना तहलका मचा के रखती हो 
हमेशा घसीटती रहोगी क्या
मरे हुए कीड़े को जैसे चीटियाँ घसीटतीं है 
थोड़ा ठहरो  ज़िंदगी 
पर तुमने कहा सारी कायनात का 
मिज़ाज बदले एक अरसा हो गया है 
तुझे जीना है तो तू बहुत से मुखौटे
इन रंगीनियों से उठा ले  
झूठफ़रेबबेईमानीचालाकी 
तूने कहा यही सारी चीज़ें हैं
वक़्त से तालमेल बिठाने के लिए 
मैंने कहा कम्बख़्त तूने बताया ही नहीं 
बड़ा सामान लगता है तेरे सफ़र में