वर्षो बाद बरसात की रात
अजब इत्तेफाक की बात
रात के पहर दस्तक
दरवाज़े पर था कोई रहवर
जैफ ने पनाह मांगी
मेरे घर के चरागों में
रौशनी बहुत कम थी
परफ्यूम की खुशबु जानी पहचानी थी
पर उसकी अवारगी और कुछ खोजती निगाहें..
मेज़ पर रखी काॅफी को
जब उसने झुक कर उठाया
रेनकोट के ऊपर वाले जेब में
मेरी तस्वीर जो बहुत पुरानी थी
जिस मोड़ को मैं छोड़ आई थी
बंद किए किस्से में वो दस्तक
नया हिस्सा जोड़ गई
वो कुछ नहीं बोला
और बारिश थमने के बाद
अलविदा कह कर चला गया
फिर से अजनबी बनने
पता नहीं अब बारिश कब होगी
काश मैं चुपके से
जेब की तस्वीर बदल पाती
उसकी वो तलाश मुकम्मल हो जाती..