Saturday, 13 July 2024

शब्द

तुम भी वहाँ मौजूद नहीं थे 

मेरा तो खैर सवाल ही नहीं उठता 

पर हमारे ख्याल वहाँ मौजूद थे 

पर हमने कभी ज़िरह की 

ये सवाल ही नहीं उठता

हमारे मौन को शब्द मिले थे

पर शब्द तुम्हारी आवाज़ से गूंजे

सवाल ही नहीं उठता

मेरे तो मौन रहने के फैसले थे 

हर एक ने नई कहानी बनाने के 

जिम्मे बहुत लिए थे 

हमें कहानी का किरदार 

बनाने का सवाल ही नहीं उठता 

मौन में उपजे लम्हे 

बेड़ियों से आज़माइश में डालते थे 

बहुत वक़्त था पर सब 

उड़ता जा रहा था तूफ़ान सा 

धीरे धीरे मौन भी खत्म हो गया 

आँधियों को ज़िन्दगी के फैसले 

उड़ा ले जाने की चाहत बहुत थी 

उजड़ा उजड़ा सा सब बिखरा हुआ 

मेरे चीखने से शब्द भी बने 

आवाज़ भी हुई 

दीवारों से टकराई फिर मुड़कर 

मुझ तक वापस आई 

नई नई दीवारें बनती थी हर लम्हा 

मेरी नज़रों के सामने 

सोने चाँदी हीरे मोती की 

पर मजबूत पत्थर सी 

शब्द भूल गई अर्थ भूल गई 

बस धुंधला सा अक्स है 

और दो आंसू हैं 

जिस दिन आँखों को 

दिखना बंद हो जाएगा 

वो मोती गालों पर लुड़क कर 

मौन को शब्द देंगे 

और स्टेज से 

ज़िन्दगी के नाटक का अंतिम दृश्य होगा  

Saturday, 30 March 2024

मेरा स्वाभिमान



तुम मुझे देखना चाहते हो 
मदारी के बंदर की तरह 
कितना हसीन ख़्बाव है तुम्हारा,
मेरा तुम पर ऐतमाद
की जहां मुझे लगे की
कदमों तले ज़मीन नहीं है,
वहाँ मुझे तुम्हारे हाथों की 
मज़बूती का अहसास हो...
पर तुम्हारे हाथों की मज़बूती में 
कठपुतली वाली डोर फँसी हुई है 
जिसके धागे मुझ तक आते हैं
और मुझे उलझा जाते हैं 
ताकि मैं चलती रहूँ 
नागफनी के सुंदर काँटों पर 
सबसे अहम मेरे अहंकार की डोर को भी 
तुम तोड़ देना चाहते हो ,पर
वो मेरा ग़ुरूर, मेरा फहम
 नहीं बन सकते तुम्हारे गुलाम
हालातो के हाथों की 
मै कठपुतली ज़रूर हूँ पर
मेरे अंदर का स्वाभिमान जब तक ज़िंदा है 
हर उल्झी हुई डोर 
मुझे नाचने पर मजबूर 
ज़रूर कर सकती है 
पर मेरे स्वाभिमान को नहीं । 

~

ऐतमाद ~ विश्वास
फहम ~ दिमाग़

Sunday, 18 February 2024

कुछ पंक्तियाँ दिल से...

~ 1 ~

 बड़ा अजीब है जनाब ये तेरा शहर 

आँखों में बड़े बड़े ख़्वाब लिए सारी रात 

बेचैनी से यहाँ से वहाँ

भागता ही रहता है 

तभी तो ये रात भर 

जागता रहता है 

सागर तेरा शहर सोता क्यों नहीं ।

 

~ 2 ~

जब भी कभी नया दोस्त मैं 

बनाता हूँ, पता नहीं क्यों 

मेरे पीठ के पीछे के 

ख़ंजरों में इज़ाफ़ा क्यों हो जाता है ।


~ 3 ~

समंदर से सीखा है मैंने 

जिसके पास 

अश्क़ो का सैलाब होता है 

वो रोया नहीं करते ।


~ 4 ~

उसने कहा एक ख़्वाब

की तरह मेरी यादों को भुला चुका हूँ 

मैंने उन ख़्यालों को 

ज़िम्मेदारियों के फ़्रेम में 

संभाल कर रखा है ।

 

Sunday, 21 January 2024

वो एक नदी यादों की


वो एक नदी यादों की 

मेरे साथ बहती बहती 

एक कहानी बन गई 

मैं वो तुम्हें सुनाना चाहती थी 

मुकम्मल होने तक कहानी 

तुम्हारी ख़ामोशी है ज़रूरी 

पर क्या तुम मौन रहोगे 

क्या तुम मुझे सुन रहे होगे 

बहुत कठिन होता है 

किसी को ख़ामोशी से सुनना 

तुम्हारी आंखो को 

मुझे समझना होगा 

क्योंकि वो दिमाग़ के

अनचाहे वाकयात को 

बंया कर देती हैं 

मेरी यादें मेरी कहानी 

वो शतरंज का खेल है न

उससे मिलती जुलती है 

तुमने कहा एक प्यारा शब्द 

कल कॉफी शॉप में बैठ कर 

तफ़सील से सुनूँगा 

मैंने कहा अपने आप से 

पर वहाँ तो मुझे अपनी कहानी 

घर पर छोड़ कर जानी होगी 

नए दौर का नया फ़रमान 

वो मेरा तफ़हीम से कहना 

उस माहौल में मेरी कहानी 

शब्द शब्द बदलना होगा मुझे 

क्योंकि तुम कदर-शनास नहीं 

कभी कभी मुझे लगता है 

मेरी कहानी 

उँचे पेड़ पर टंगी 

मुझे चिढा रही है 

की मैं न कभी 

सुना सकूँगी 

वो एक नदी सी 

मेरे साथ-साथ 

बहती रहेगी...