कल बहुत देर तलक सोचती रही
फिर सोचा बात कर ही लूं
फिर मैंने ज़िंदगी को फ़ोन लगाया
मैंने कहा आओ बैठो किसी दिन
दो चार बातें करते हैं
एक एक कप गर्म चाय की प्याली
एक दूसरे को सर्व करते हैं
हमेशा भागती रहती हो ज़रा जीने भी दो
कुछ मेरी पसंद के दो चार दिन
इतना तहलका मचा के रखती हो
हमेशा घसीटती रहोगी क्या
मरे हुए कीड़े को जैसे चीटियाँ घसीटतीं है
थोड़ा ठहरो ऐ ज़िंदगी
पर तुमने कहा सारी कायनात का
मिज़ाज बदले एक अरसा हो गया है
तुझे जीना है तो तू बहुत से मुखौटे
इन रंगीनियों से उठा ले
झूठ, फ़रेब, बेईमानी, चालाकी
तूने कहा यही सारी चीज़ें हैं
वक़्त से तालमेल बिठाने के लिए
मैंने कहा कम्बख़्त तूने बताया ही नहीं
बड़ा सामान लगता है तेरे सफ़र में
वाह
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर ।
Deleteबहुत सुन्दर।
ReplyDelete--
पुत्री दिवस की बधाई हो।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर
Deleteसुंदर गुफ्तगू, जिंदगी के संग।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर ।
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर ।
Deleteवाहः सुंदर लेखन
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया ।
Deleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय ।
Deleteसुन्दर रचनाओं से परिपूर्ण ब्लॉग - - नमन सह।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय ।
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय ।
Deleteबहुत ही सुन्दर गुप्तगू जिंदगी से...
ReplyDeleteवाह!!!
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया
Deleteबहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन दी ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया ।
Deleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया मेरी रचना को पाँच लिंकों का आंनद में स्थान देने पर ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर मेरी रचना को चर्चा अंक में स्थान देने पर ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर ।
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया
Deleteबेहद दिलचस्प कविता
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया ।
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया
Deleteबहुत सुंदर रचना, मधुलिका दी।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया
Deleteवाह ! बहुत सुन्दर रचना |
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर
Deleteअनूठे अंदाज़ में लिखी लाजवाब रचना ... वाह ...
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर 🙏
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