तब से मैने ख़ुली ही रख़ी है
क्योंकि उसके ठीक सामने
चाँद आकर रुकता है
एक छोटे तारे के साथ
मेरे पास बहुत से सवालों
के नहीं है हिसाब
वर्षों से रोज़ रात
मेरे सिरहाने बैठ कर
बेटी पूछती है
"माँ , पापा कभी लौट कर आएंगे क्या ?"
मैं खिड़की पर थमे हुए चॉंद में
तुम्हारी तस्वीर उसे दिखाती हूँ
हमारी अच्छी चीज़ें
चॉंद अपने पास रखता है
हाँ वो साथ वाला छोटा तारा
तुम्हारी बात सुन रहा है
और वो चाँद को बताएगा
आने वाली कल रात को
जो कभी नहीं आने वाली
चाँद से बेटी को बहलाती हूँ
वो खुली ख़िडकी
मेरे बहुत से सवालों के
जावाब देने के काम आती है ।