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Wednesday, 30 September 2015

परिंदे


परिंदे नहीं होते स्वार्थी
ख़ुल कर जीते हैं
आख़िरि सांस तक 
निस्वार्थ भाव से सिख़ाते हैं
अपने बच्चो को उड़ना
ख़ुल जाते हैं जब बच्चो के पंख़ 
नहीं उम्मीद करते की
ये मुड़कर लौटेगा भी की नहीं 
आने वाला कल 
घोंसला ख़ाली होगा की भरा 
कैसे रह पाते होंगें 
उनके अपने जब दूर चले जाते होंगें
उनके आँसू उनका दिल उनका इतंज़ार
क्या वो घोंसले से निकाल फ़ेकते हैं
और उड़ जाते हैं सब कुछ झटक कर
कहीं बहुत दूर बिना यादों के