सरहदों से तुम्हारा आना
पलाश के फूल की तरह
वहीँ तो खिलते हैं
उमीदों की तपती दोपहर में
तुम आओगे तो न
बहुत दिनों से कह तो रहे हो
पर आने के तुम्हारे संदेशों में
इंतज़ार मुझे हराता नहीं है
वो ख़त्म होती ख़ुशी को
रोज़ मैं
खींच कर, खरोंच कर
बचा कर
जी रही हूँ
फिक्रमंद ज़िन्दगी रोज़ मरती है
और ये परेशानियों का अब्र
चाहिए बहुत सारा सब्र
बड़े शहरों के बड़े वादे
और तू भी आने की बातों के
फरेब में जीना सिखा दे
पीली पत्तियाँ और ये पतझड़
इन्ही के बीच
कहीं न कहीं
नई कोपलें भी होंगी
हर कोने में उदासी फ़ैल रही है
तुम थोड़ा जल्दी आ जाना
मैंने एक शोख रंग बचा रखा है
उसे हम ख़ुशी में घोल देंगे
सच कहो तुम
इंतज़ार की हद के
गुजरने से पहले तो
आ जाओगे न