वर्षो बाद बरसात की रात
अजब इत्तेफाक की बात
रात के पहर दस्तक
दरवाज़े पर था कोई रहवर
जैफ ने पनाह मांगी
मेरे घर के चरागों में
रौशनी बहुत कम थी
परफ्यूम की खुशबु जानी पहचानी थी
पर उसकी अवारगी और कुछ खोजती निगाहें..
मेज़ पर रखी काॅफी को
जब उसने झुक कर उठाया
रेनकोट के ऊपर वाले जेब में
मेरी तस्वीर जो बहुत पुरानी थी
जिस मोड़ को मैं छोड़ आई थी
बंद किए किस्से में वो दस्तक
नया हिस्सा जोड़ गई
वो कुछ नहीं बोला
और बारिश थमने के बाद
अलविदा कह कर चला गया
फिर से अजनबी बनने
पता नहीं अब बारिश कब होगी
काश मैं चुपके से
जेब की तस्वीर बदल पाती
उसकी वो तलाश मुकम्मल हो जाती..
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 11 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteमैडम आप का तहेदिल से शुक्रिया मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में स्थान देने के लिए। 💐
Deleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर
Deleteवाह,क्या बात
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर
Deleteभावों से भरी सुंदर रचना मधुलिका जी |सस्नेह शुभकामनाएं और बधाई |
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया
Deleteबहुत ही सुन्दर...
ReplyDeleteवाह!!!
बहुत बहुत शुक्रिया
Deleteबहुत बहुत शुक्रिया
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आप का मेरी रचना को लोकतंत्र संवाद में स्थान देने के लिए। 💐
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर ।
Deleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteकई दिनों बाद आपको ब्लॉग पर देखा ... अच्छा लगा ...
हमेशा की तरह बेचैन सी रचना ...
bahut bahut shukriya sir
ReplyDeleteBahut khoob👌
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर ।
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