Tuesday, 10 March 2020

वो तलाश


वर्षो बाद बरसात की रात
अजब इत्तेफाक की बात
रात के पहर दस्तक
दरवाज़े पर था कोई रहवर
जैफ ने पनाह मांगी
मेरे घर के चरागों में
रौशनी बहुत कम थी
परफ्यूम की खुशबु जानी पहचानी थी
पर उसकी अवारगी और कुछ खोजती निगाहें.. 
मेज़ पर रखी काॅफी को
जब उसने झुक कर उठाया
रेनकोट के ऊपर वाले जेब में
मेरी तस्वीर जो बहुत पुरानी थी
जिस मोड़ को मैं छोड़ आई थी
बंद किए किस्से में वो दस्तक
नया हिस्सा जोड़ गई
वो कुछ नहीं बोला
और बारिश थमने के बाद
अलविदा कह कर चला गया
फिर से अजनबी बनने
पता नहीं अब बारिश कब होगी
काश मैं चुपके से 
जेब की तस्वीर बदल पाती
उसकी वो तलाश मुकम्मल हो जाती..

21 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 11 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. मैडम आप का तहेदिल से शुक्रिया मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में स्थान देने के लिए। 💐

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर

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  3. वाह,क्या बात

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर

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  4. भावों से भरी सुंदर रचना मधुलिका जी |सस्नेह शुभकामनाएं और बधाई |

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया

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  5. बहुत ही सुन्दर...
    वाह!!!

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया

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    2. बहुत बहुत शुक्रिया

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  6. बहुत सुन्दर

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  7. तहेदिल से शुक्रिया आप का मेरी रचना को लोकतंत्र संवाद में स्थान देने के लिए। 💐

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  8. बहुत बहुत शुक्रिया सर

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  9. बहुत ही सुंदर रचना

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर ।

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  10. बहुत खूब ...
    कई दिनों बाद आपको ब्लॉग पर देखा ... अच्छा लगा ...
    हमेशा की तरह बेचैन सी रचना ...

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  11. Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर ।

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