वो खाकी शर्ट पर
अब भी निशाँ होंगे
पिछली होली के
वो अबीर का गुब्बार
रंग कर चला गया था तुम्हे
रंगो का इंद्रधनुष बिखेर गया था ख़ुशी
गुलाल का रंग
दहकते गालों में
खो गया था
तुम्हे रंगों की पहचान जो
गहराइयों से थी
अब के बरस
बहुत सारा पानी भर था
रंग नहीं
वो तुम्हारी बातें
झील सी आँखें
रंग सारे तुम ले गए
बस मेरे हिस्से का
खारा पानी झीलों में
छोड़ गए
वो शर्ट वो रंग के निशः
वो होली
बस गालों को भिगो गया
खारा पानी