Tuesday, 17 May 2022

माँ तुम यहीं हो

पवित्र नदीजिसे हम 
माँ नर्मदा कहते हैं
अक्सर जाती हूँ 
और सीढ़ी पर बैठ कर 
घंटो ख़ामोशी से बहती 
नदी को देखती रहती हूँ
मैं कई दिनोंमहीनोंसालों से 
कुछ तलाश रही थी 
घाट की सीढियाँ उतरती हैं 
गहरे पानी में 
आखरी सीढ़ी से टकराते पानी की 
आवाज़ मुझे खींच रही थी 
उस आवाज़ का अनुसरण कर 
वहां जाती हूँ 


उस आखरी सीढ़ी पर 
बैठ कर टकराते पानी की 
आवाज़ सुनती हूँ समझती हूँ 
मेरी तलाश को एक 
मुकाम हासिल होता है 
उस टकराते पानी को 
ध्यान से सुनती हूँ 
उस आवाज़ में मुझे 
अहसास होता है की 
माँ तुम यहीं हो 
माँ नर्मदा ने 
मुझे मेरी माँ से मिला दिया 
अब माँ के जाने के बाद 
जब भी मन करता है 
उनसे मिलने का 
आखिरी सीढ़ी के टकराते पानी से 
बातें कर लेती हूँ 
एक माँ ने मुझे मेरी माँ लौटा दी