Sunday, 6 March 2022

कुछ पंक्तियाँ



~ 1 ~

 उस मोड़ का वो ढ़लान 

जहाँ मेरा रास्ता अलग हो जाता था

उसकी गवाह वो

गुलमोहर और नीम की 

बंटी हुई छांव



~2~

जीवन की जंग में 

रोज़ मैं अपने 

हथियारों को तराशती हूँ 

पर दुनियाँ से 

जब रूबरू होती हूँ 

तो पाती हूँ 

अभी और धार बाकि है



~ 3 ~

कर्मों की कश्ती 

 जाने किस दरख्त 

को काट कर बनाई जाती है 

एक खासियत बड़ी अच्छी है 

इसमें, कि एक दिन 

हमारे पास वापस लौट कर 

ज़रूर आती है





~ 4 ~

बहुत सी यादें थी 

कुछ सुलझी 

कुछ उल्झी 

उनमें से चुनना मुश्किल था 

फिर मैंने एक फैसला लिया 

उन्हें वक्त पे छोड़ दिया 

और फिर जिरह चलती रही 

तारीखें बदलती रही



~ 5 ~

उसने सर्द अल्फ़ाज़ों 

से कहा 

ज़िन्दगी भी रात की तरह है 

चांदनी सी चमक बहुत है 

चारो तरफ 

पर किस्मत का हर सितारा 

टूटा हुआ है



~ 6 ~

इस शहर की सर्द हवाएं 

मुझसे होकर गुज़री 

कुछ तुझसे 

हवाओं की गुफ्तगू 

ने हौले से फ़रमाया 

हम एक ही शहर में हैं



~ 7 ~

एक उलझी हुई 

उदास होती शाम 

कुछ खाली प्याले 

कुछ आधे भरे हुए 

कांच कुछ टूटे 

बिखरे हुए 

पर इन सबसे 

जुड़ी हुई 

एक कहानी 

शायद सुनी किसी ने नहीं 

पर अनकही 

भी तो रही नहीं