दम घुटने के बाद की बची सांसें
खर्च तो करनी ही होती हैं
एक उम्र उन्हें खींचती रहती है
जीने के लिए
आस पास आशा निराशा के बीच
जो छोटी खुशियाँ बची होती है
हर पड़ाव पर मील का पत्थर
जर्द है
शायद आगे कुछ लिखा होगा
मन समझाता है
लोग कहते हैं
तुम्हारी लेखनी में
जीवन्त्तता नहीं है
सकारात्मकता होनी चाहिए थी
सच सच होता है
न की सकारात्मक
न की नकारात्मक
हर एक के जीवन की
अपनी एक रचना होती है
लोगों की पसंद पर नहीं
चलती कलम
मैं भी एक नकाब पेहेन लू क्या
पर कलम के लिए कोई
नकाब नहीं होता
बेबाक कलम
बेनकाब कलम ...