कई दिनों से खामखा की ज़िद
वह श्रृंगार अधूरा सा क्यों है
अब क्या और किस बात की जिरह
मेरे पास नहीं है वो ज़ेवर
जो तुम्हे वर्षों पहले चाहिए थे
वह सब मैंने ज़मीं में दफ़न कर दिया है
हालात बदल गए हैं
तुम उस ख़ज़ाने को ढूंढना चाहते हो
और चाहते हो की उस
एक एक आभूषण को
मैं धारण कर लूँ
वो ख़ज़ाने का सामान
वो कहकहे वो इंतज़ार
वो आँखों की चमक
वो गालों का दहक उठना
वो बातों की खनक
सब तुम्हारी आखरी मुलाक़ात के बाद
वहीं दफ़न कर दिया था
क्योंकि मुझे उन गहनों की
आदत नहीं रही
वो श्रृंगार अब नहीं कर सकती
क्यों बेकार में खामखा की ज़िद