एक अरसे से
मेरी तलाश जारी है
पर यादों की किरचें जो
मेरी राहों पर पड़ी है
उनकी चुभन मुझे शिकस्त दिये जा रही हैं
कल तेरी तलाश में मैं
पुराने शहर का चक्कर लगा आया
तलाश मुक्कमल तो नहीं हुई
पर वो पुराने शहर को मैं
सालों बाद भी नहीं भुला पाया
पुराना पता हाथ में था लिया
हस रहा था हर शक्स मुझ पर
कह रहे थे लोग कई
ये कौन है बंजारा
फिर रहा है मारा-मारा
इसे कोई समझाओ
शहर लोग पते सब बदले
पर मैंने तेरे इन्तेज़ार में
पत्थरों पर थे जो निशान उकेरे
उनमे नहीं हुई कोई तब्दीली
उस जगह पर अब इक फकीर
रोज शाम को चिराग रौशन करता है
उस पत्थर पर ज़मी धूल के नीचे
कुछ यादें दफन हैं
उस धूल को समेट कर
आखरी इन्तेजार के साथ
तलाशता रहा तुम्हें
कुछ वक्त वहां ठहर के