न मंजिल मिली न किनारा
न शब्दों का अर्थ
अनवरत चलते कदम
कभी थकते हैं कभी रुकते हैं
बस झुकना,
वो कमबख़्त वक़्त भी
नहीं सिखा पाया
ये उम्मीद शब्द
मैने सुना जरूर है
मेरी कलम उसे
बहुत अच्छे से लिख लेती है
पर मेरा मस्तिष्क उसका अर्थ
ढूँढ पाने में बहुत असमर्थ है
क्योंकि उसका अर्थ
जो तुम बता गए थे
उस तरह का मिलता ही नहीं
न जाने कौन लिखता है
तकदीर की इबारत
क्यों वो सामने आता ही नहीं
वर्ना जिंदगी में
इस पार या उस पार
कहीं तो अपना अर्थ लिए
मुझे उम्मीद मिलती