Sunday, 21 January 2024

वो एक नदी यादों की


वो एक नदी यादों की 

मेरे साथ बहती बहती 

एक कहानी बन गई 

मैं वो तुम्हें सुनाना चाहती थी 

मुकम्मल होने तक कहानी 

तुम्हारी ख़ामोशी है ज़रूरी 

पर क्या तुम मौन रहोगे 

क्या तुम मुझे सुन रहे होगे 

बहुत कठिन होता है 

किसी को ख़ामोशी से सुनना 

तुम्हारी आंखो को 

मुझे समझना होगा 

क्योंकि वो दिमाग़ के

अनचाहे वाकयात को 

बंया कर देती हैं 

मेरी यादें मेरी कहानी 

वो शतरंज का खेल है न

उससे मिलती जुलती है 

तुमने कहा एक प्यारा शब्द 

कल कॉफी शॉप में बैठ कर 

तफ़सील से सुनूँगा 

मैंने कहा अपने आप से 

पर वहाँ तो मुझे अपनी कहानी 

घर पर छोड़ कर जानी होगी 

नए दौर का नया फ़रमान 

वो मेरा तफ़हीम से कहना 

उस माहौल में मेरी कहानी 

शब्द शब्द बदलना होगा मुझे 

क्योंकि तुम कदर-शनास नहीं 

कभी कभी मुझे लगता है 

मेरी कहानी 

उँचे पेड़ पर टंगी 

मुझे चिढा रही है 

की मैं न कभी 

सुना सकूँगी 

वो एक नदी सी 

मेरे साथ-साथ 

बहती रहेगी...