Monday 25 May 2015

इंतज़ार


हालातों ने उसकी खुशी को
कही दफ़ना दिया
उससे छीन कर उसकी मुस्कुराहट को
कहीं छिपा दिया
चाहती थी वो सूरज की किरनों से पहले
दौड़ कर धरा को छू लू
गुन-गुनी धूप सी गरमाइश
हाथों में हुआ करती थी
जाड़े में गुलमोहर के नीचे
इंतज़ार खत्म होता था
और सर्द हवाओं में
काँपते उसके हाथ 
होते थे तुम्हारे हाथों में
वो गरमाइश अब बर्फ हो गई 
वो कभी न खत्म होने वाली
बातों का सिलसिला
अब कभी-कभी कानों मे
कहीं दूर गूंजता सा है
वो तुम्हारी उपमा
सुबह के सूरज की आभा
चहरे से बहुत दूर हो चली है
अब माथे पर लकीरें हैं
पगडंडियों की तरह
जिनमें खो कर अपने आप को ढूँढना
बहुत मुश्किल है
वो झुके हुए कंधे और बढ़ता हुआ बोझ
पुराने वक़्त को किसी खोए हुए सिक्के की तरह
ढूँढती है आँखें ।

38 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-05-2015) को माँ की ममता; चर्चा मंच -1987 पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

    ReplyDelete
    Replies
    1. शास्त्री जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया। आपकी ब्लाग एक बहुत अच्छा ज़रिया है लोगों तक पहुंचने का। तहे दिल से शुक्रिया।

      Delete
  2. बहुत सुन्दर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका ओंकार जी

      Delete
  3. वाह बहुत सुंदर प्रस्तुति ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका नीरज जी

      Delete
  4. Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका कालीपद जी

      Delete
  5. बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया आपका रश्मि जी

      Delete
  6. Replies
    1. शुक्रिया आपका सुमन जी

      Delete
  7. waah bahut hi khoobsoorat nazm...dhairoN daad Madhulika ji....

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका हर्ष जी

      Delete
  8. बेहद सुंदर रचना।

    ReplyDelete
  9. बहुत बहुत शुक्रिया आपका कहकशां जी

    ReplyDelete
  10. बहुत बहुत शुक्रिया आपका मदन मोहन जी

    ReplyDelete
  11. बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता मधुलिका जी, देरी से आने के लिए खेद है

    ReplyDelete
    Replies
    1. अनीता जी आप ने दिल को छू लेने वाली बात कह दी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

      Delete
  12. बेहद खूबसूरती से रचित.भावुक प्रस्तुति
    पर एक बार अपने भीतर भी ढूंढे सब कुछ चल चित्र सा चल पड़ेगा

    ReplyDelete
  13. बेहद खूबसूरती से रचित.भावुक प्रस्तुति
    पर एक बार अपने भीतर भी ढूंढे सब कुछ चल चित्र सा चल पड़ेगा

    ReplyDelete
  14. बहुत बहुत शुक्रिया आपका रचना जी

    ReplyDelete
  15. क्या बात है। बहुत ही सुन्दर रचना।

    http://chlachitra.blogspot.in
    http://cricketluverr.blogspot.in

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका मिथिलेश जी

      Delete
  16. वक्त ही है जो किसी के बस में नहीं होता ...हालात इसके गुलाम हैं ...
    गहरी सोच लिए भाव ..

    ReplyDelete
  17. Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका सुशील कुमार जी

      Delete
  18. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका

      Delete
  19. Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका संजय जी

      Delete
  20. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका जी

      Delete
  21. Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका शिवराज जी

      Delete
  22. गहरे भावों की अभिव्यक्ति।बहुत ही खूबसूरत रचना।

    ReplyDelete
  23. गहरे भावों की अभिव्यक्ति।बहुत ही खूबसूरत रचना।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका राजेश कुमार जी

      Delete