जिसमें मै खुशियाँ रखती थी
वो बक्सा कही खो गया है
बहुत कीमती था वो
किसी को मिले तो लौटा जाना
उसके खोने से
अब सब कुछ बिखर गया है
वक्त जो गया, मेरे हाथ नहीं आया
और न उसे साथ लाया
मेरे भाग्य का सब कुछ खो क्यों जाता है
मै बक्से में ताला नहीं लगाती थी
खुशियाँ उसमें समाती न थी
अब कुछ बचा ही नहीं मेरे पास
मेरा मन न खुश है न उदास
अब न इंतजार है न खोने का गम
न अब नए बक्से की जरुरत है
पर मेरा बक्सा किसी को मिले तो
मेरे पते पर पहुँचा जाना
मेरा पता
वही पलाश का पेड़
पुरानी खुशियाँ बंद पड़े - पड़े
कही गल न जाएं
मेरे पुराने दोस्तों, उन खुशियो को
धूप दिखाने आ जाना इक वार
मेरे भाग्य का सब कुछ खो क्यों जाता है ?
वाह सुंदर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सुशील जी |
Deleteमेरा पता ... वही पलाश का पेड़ ...
ReplyDeleteबहुत उम्दा ख्याल को शब्द पहना दिए हैं ...
आपकी प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।
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