बिना बोले आ जाती है हवा
और जब हर पन्ने को खोलकर चली जाती है
तब यादों की खुशबू
मेरे चारों ओर फैल जाती है
और घटों मैं अपने आप से
बातें करने लगती हूँ
वो कमरे में तुम्हारे होने का अहसास
खिड़की पर रखे रजनीगंधा के फूल
वो ख़त
वो किताबों में रख़ी सूखी पख़ुडियाँ
उस कमरे की हवा
मुझसे लिपट कर अतीत में ले जाने की कोशिश करती है
एक अजीब सी अकेलेपन की सिहरन
नसों में दौड़ जाती है
मुझे तुम्हारी सारी बातें याद हैं
इसलिए अब दौहराने
को कुछ बचा ही नहीं
मुझे पता है तुम कहीं नहीं हो
पर तुम मेरी यादों में हो
तुम मेरी आसमानी रगं की
डायरी के पन्नों में बसे हो |
मेरी रचना को शामिल करने का बहुत बहुत शुक्रिया आपका शास्त्री जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका ओंकार जी
Deleteजब तक यादें हैं खुशबू है ... हवाएं हैं ...
ReplyDeleteसच कहो तो जीवन भी तो तभी तक है ...
बहुत बहुत शुक्रिया आपका दिगम्बर जी
ReplyDeleteसुंदर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका हिमकर जी
ReplyDeleteक्या बात है..एकदम अलग अंदाज़...बढ़िया आलेख और सुन्दर नज़्म
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका संजय जी
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