Wednesday, 13 May 2015

तुमने किताब की तरह पढ़ा मुझे



तुमने किताब की तरह पढ़ा मुझे
पर समझ नहीं पाए
किस वाक्य पर रुके,किस पर हँसे और मुस्कुराए
पन्ने की तरह तुमने
दिल के किसी कोने में,मोड़ कर कुछ बंद किया था
उस मुड़े हुए पन्नें को, तुमने कभी नहीं खोला
कोई रहस्य नहीं छुपा था
उसके अंदर
बस कुछ पंक्तिया थी
जिनका अर्थ तुम्हे ढूंढ़ना था
बरसो से किताब अब भी
उसी मेज पर पड़ी है
धूल की बहुत सी परतों से ढकी है
उस झरोखे से आती हुई हवा
जब भी उस किताब के पन्नों को
खोलने की कोशिश करती है
सारे पन्ने खुल जाते है
पर वो मुड़ा हुआ पन्ना
आज भी तुम्हारे इंतजार में है
शायद तुम आओ
उस मुड़े हुऐ पन्नें को खोलो
और उन पंक्तियों का अर्थ बोलो ।

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