Saturday 6 November 2021

कुछ पंक्तियाँ दिल से


~ 1 ~

 तरक्की की वो दौड़ 

हर मायने खो देती है जनाब 

जिसमें माँ - बाप का हाथ 

उनके बच्चों से छूटता जाए 


~ 2 ~

वक़्त ने सीखा और समझा दिया 

बहुत सी भीड़ रही अपनों की 

पर सारी ज़िन्दगी

अकेले ही चलते रहे


~ 3 ~

शहर में बड़ी चहल पहल है 

लग रहा है खूब बिक रही हैं मेरी यादें 

तूने उसकी बोली 

बड़े सस्ते दामों में जो लगा दी 


~ 4 ~

मैंने कहा चली जाओ 

मेरी ज़िन्दगी से 

पर वो कहाँ मानने वाली थी 

तेरी यादें 

तेरी तरह उनको भी 

अड़े रहने की 

पुरानी आदत जो ठहरी 


~ 5 ~

मेरी खामोश यात्रा का वो मुसाफिर 

बात कुछ भी नहीं हुई 

पर पता नहीं क्यों 

आज तक उसके किस्से 

ख़त्म ही नहीं हो रहे


~ 6 ~

मेरे दुपट्टे के हर मकेश के साथ

धागे की जगह 

तुम्हारी यादें टकी हुई हैं 

कल मैं गइ थी 

कारीगर के पास 

मकेश निकलवाने 

उसने कहा इन्हे उधेड़ने से 

सब कुछ तार - तार हो जाएगा 

Friday 15 October 2021

बीते हुए लम्हें




मैंने यादों को सफ़ेद लिबास में

दफ़्न होते देखा है

कल किसी ने दस्तक दी

दरवाज़े पर

मैंने पूछा कौन है

उसने कहा मैं हूँ बीता हुआ लम्हा

क्या मैं अंदर आ जाऊँ..

मैंने कहा आओ

ये किस बच्चे को साथ ले आए

उसने कहा ये तुम्हारा बचपन है

बहुत दिनो से ज़िद कर रहा था

तुम्हें अपने साथ अपने शहर

ले जाने के लिए

पुराने घर में पुराने दोस्तों के साथ

वो जानी पहचानी वाली सड़कों

का शहर छोटा सा शांत

चूल्हे की सौंधी रोटी

नदी का किनारा

बड़ी सी मुस्कुराहट

वाला भोला सा बचपन

इमली आम कच्चे जाम

दोपहर की सस्ती क़ुल्फ़ी

चाँदनी रात में बिछावन

कल नहीं था सोचने को

आज में जी भर कर जीने वाले

बड़े शहर के जाल में

पक्षी सा फँस के

रह गया जीवन

कब पंख टूट कर

बिखर गये

वापस अपने शहर

न आ सके

उस पुराने मकान से

जुड़ी हुई थी कईं यादें

आज उसके गिरने से

सब टुकड़े टुकड़े सा

बिखर गया

मैंने यादों को

सफ़ेद लिबास में

दफ़्न होते देखा है...

Saturday 12 June 2021

तुम आओ तो सही ...

-1-

 मेरे दस्तावेज़ों में 

तू अब भी ज़िंदा है 

मैंने अपना 

अतीत और वर्त्तमान 

सब तेरे नाम की 

वसीयत में जो लिखा है 

~~~~~ 


-2-

इतनी रफ़्तार से 

तुम आशियाने मत बदलो 

दरवाज़े पे 

बस इतना लिख देना 

की तुमने अपने आप को 

तब्दील कर लिया है 

~~~~~ 


-3-

चलो आज झगड़ा 

हमेशा के लिए 

ख़त्म करते हैं 

बहुत सारी शिकायतें 

तुम रख लो 

नाकाम मोहब्बत का इल्ज़ाम 

मैं रख लेती हु 

~~~~~ 


-4-

तुम आओ तो सही 

मेरी कब्र पर एक बार 

दोनों शब्दों के अर्थ 

तलाशने नहीं पड़ेंगे 

एक खामोशी, दूसरा इंतज़ार ... 



Monday 29 March 2021

धूप सुनहरी तेरे आँगन की


तेरे आँगन की धूप सुनहरी चमकीली 

मेरे घर की मसाले वाली चाय अदरक की 

बस दो छोटे से बहाने थे 

गुलाबी ठण्ड बिताने के 

धूप की चमक आँखों में 

बातों का सिलसिला किताबों में 

मासूम सी मुलाक़ात 

बहुत जल्दी में 

ढलती वो चटकीली धूप 

मलाल तो रहता है 

घाटियों सी उदासियाँ 

कल की धूप बहुत कुछ 

पार करके आएगी 

बादलों को भी तो

कभी कभी 

कुछ काम नहीं होता 

बेमौसम बरस कर 

सूरज को छिपा आते हैं कहीं 

काश सूरज तेरे घर के 

काँच के जार में 

बंद रहता 

बनी रहती धूप सुनहरी 

तेरे आँगन की 

और अदरक वाली चाय 

मेरे घर की 



Sunday 7 March 2021

बेटी ~ एक नायाब हीरा


बेटी पराया धन नहीं 

माँ - बाप का नायाब हीरा होती है 

बेटी की विदाई 

यह एक शब्द है 

पर क्या हम वाकई 

बेटी को विदा कर पाते हैं 

दो बक्सों में सामान रखने से 

बेटी की विदाई 

संपूर्ण नहीं होती 

उसने इतने सालों से

जो उस घर को बिखेर रखा है 

वो सामान जो 

हमारे रग रग में बसा है 

हम कैसे उसे समेटे 

पूरे घर में उसकी खुशबू 

उसकी हंसी 

उसकी मुस्कुराहट

उसके सुख दुःख 

घर के हर कण कण में समाये हैं 

स्त्री एक अद्वितीय रचनाकार है 

जो रचता है 

उसे हम विदा कैसे करें 

बेटी विदा नहीं होती 

वह एक और 

नए संसार को रचती है 

नए रिश्ते को पूर्ण करती है 

अपने परिवार से नए 

परिवेश को जोड़ती है 

बेटी पराया धन नहीं 

एक नायाब हीरा है 


Wednesday 17 February 2021

अब टूट कर न बिखरे, ये बचे हुए सपने


 मैंने अपने हिस्से के कुछ सपने 

छुपा दिए थे उम्मीदों के आसमान में 

सोच रही हूँ वहाँ जा कर 

ले आऊं उन्हें 

मेरे रोशनदान पर एक बुल बुल 

रोज दाना चुगने आती है 

मैंने उससे कहा तुम्हारे 

पंख मुझे उधार देदो 

मैं स्त्री हूँ 

मैं सपने देख भी सकती हूँ 

सपने चुरा भी सकती हूँ 

पर सपनों में जीना 

तमाम पाबंदियों के बीच 

सपनों को यूं 

आकाश से उठा लाना 

नहीं संभव है 

इन कोशिशों में 

कई पंख जल गए 

कितने सपने जब भी लाइ 

वो हालातों के पर्वतों से टकरा 

चूर चूर हो गए 

कुछ लावा बन कर पिघल गए 

पता नहीं रेजा रेजा हो कर 

कहाँ बिखर गए 

बंदिशों की आग और आंधी 

बचे हुए सपने

अब टूट कर न बिखरे 

तुम सुन रही हो न 

तुम्हारे पंख मेरे सपने 

तुम्हारे रंगीन पंखों सा 

रंग भरूंगी उन सपनों में 

मुझे तुम्हारे पंख चाहिए 

न टूटे, न उम्मीदों के दामन से 

मेरा हाथ छूटे ...

Thursday 7 January 2021

बेबाक कलम


दम घुटने के बाद की बची सांसें 

खर्च तो करनी ही होती हैं 

एक उम्र उन्हें खींचती रहती है 

जीने के लिए 

आस पास आशा निराशा के बीच 

जो छोटी खुशियाँ बची होती है 

हर पड़ाव पर मील का पत्थर 

जर्द है 

शायद आगे कुछ लिखा होगा 

मन समझाता है 

लोग कहते हैं 

तुम्हारी लेखनी में 

जीवन्त्तता नहीं है 

सकारात्मकता होनी चाहिए थी 

सच सच होता है 

न की सकारात्मक 

न की नकारात्मक 

हर एक के जीवन की 

अपनी एक रचना होती है 

लोगों की पसंद पर नहीं 

चलती कलम 

मैं भी एक नकाब पेहेन लू क्या 

पर कलम के लिए कोई 

नकाब नहीं होता 

बेबाक कलम 

बेनकाब कलम ...